Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best खाए Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best खाए Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about अलसी को कैसे खाए, बनाओ तनी खाए नहीं, जो उसे काट खाए बिछुआ, खाना ना खाए देला, पड़ाके मैंने कब खाए,

  • 15 Followers
  • 43 Stories
    PopularLatestVideo

Dr Madan Mohan Sharma

#खाए हैं बहुत धोखे---- #Kathakaar

read more
mute video

power of words.

मुझे जीना है अपने सपनॊ को
कोई मुझे छोड़कर जाए तॊ जाए
मै तो रहूंगी सच के साथ 
कोई झूठी कसमें खाए तो खाए
मै भी रहूंगी इसी समाज में
कोई गुनाहगार बताए तो बताए
मुझे रहना है अपने बल पर 
कोई नफरत दिखाए तो दिखाए
बन गई हूं मोम से चट्टान अब
इस चट्टान को कोई सताए तो सताए
जिनकी रिश्ते निभाने की औकात नही
वो मुझसे दुश्मनी निभाए तो निभाए #mystory #life #love #jindgi #apnikitab

Haleema Ali (Hallu)

#खाए जाऔ #खाए जाऔ,,#माता को गुण गाए जाओ,, #नवरात्र

read more
DEAREST GODDESS,,,,,,
यह लड़कियाँ खुले आम आपको धोखा दे रहीं हैं,,,,
बात आए Figure Maintain की तो Limited थूर रहीं हैं
और बात आई #नवरात्र की तो मुँह छूट सुबह शाम ठूस रहीं हैं,,।।

Hallu✍ #खाए जाऔ #खाए जाऔ,,#माता को गुण गाए जाओ,,

dayal singh

bachpan ke din

read more
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

ASH WRITES (AMIT)

मैं दुर रहता हूँ उससे तो चैन से वो भी कहा रहती है... भुखा मैं रहता हूँ तो नींद उसे भी कहाँ आती है.. ... एक माँ ही तो है जो मेरी हर बात समझ जाती हैं.. वो गुस्से में हो तो दो चाँटे भी लगाती है.. जब प्यार आता है तो अपने हाथो से खाना भी खिलाती है. एक माँ ही तो है जो मेरी हर बात जान जाती है.. मैं स्कुल जाते वक्त रो देता था उसकी साडी पकड कर.. वो भीगी पलको से फ़िर भी स्कुल छोड आती थी..

read more
कुछ लिखा है माँ ओर बेटे के लिए जो बच्चे अपनी माँ से दुर रहते हैं उनके लिए तो caption पढिए ओर बताए केसी लगी 💖😊 मैं दुर रहता हूँ उससे तो चैन से वो भी कहा रहती है... 
भुखा मैं रहता हूँ तो नींद उसे भी कहाँ आती है.. ... 
एक माँ ही तो है जो मेरी हर बात समझ जाती हैं.. 
वो गुस्से में हो तो दो चाँटे भी लगाती है.. 
जब प्यार आता है तो अपने हाथो से खाना भी खिलाती है. 
एक माँ ही तो है जो मेरी हर बात जान जाती है.. 
मैं स्कुल जाते वक्त रो देता था उसकी साडी पकड कर.. 
वो भीगी पलको से फ़िर भी स्कुल छोड आती थी..

Shivam

#RDV19 पंदरह दिन पंदरह दिन जब चाँद विश्व में खूब चमकता भ्रमण करे, पंदरह दिन जब चाँद चांदनी पे निज अपनी घमंड करे पंदरह दिन जब अपनी कलाओं में खुद ही गोते खाए पंदरह दिन जब करे किसानी, जोते-खाए, खुशी उगाए #poem

read more
पंदरह बाद के कृष्ण पक्ष के दिवस घूम के जब आएं
पंदरह अंधियारी रातों में चाँद रहे पर गुम जाए
निशा *पञ्चदश चाँद पे वो कितनी भारी होती होंगी
पंदरह ही होती हैं पर कितनी सारी होती होंगी

पंदरह उजली रातों में भी वो कितना खुश रहता है,
सबने खुद से सोच लिया ना किसी ने उससे पूछा है
माना चमक, चाँदनी, कई आकार का वो हो सकता है
पर चमक, चाँदनी, शोहरत से कोई कितना खुश हो सकता है ?

(पूरी कविता कैप्शन में।) #RDV19

पंदरह दिन

पंदरह दिन जब चाँद विश्व में खूब चमकता भ्रमण करे,
पंदरह दिन जब चाँद चांदनी पे निज अपनी घमंड करे
पंदरह दिन जब अपनी कलाओं में खुद ही गोते खाए
पंदरह दिन जब करे किसानी, जोते-खाए, खुशी उगाए

kunal gautam

#खाए है लाखों #धोखे एक और #सह लेंगे तु ले जा अपनी #डोली हम अपने #जनाज़े को #बारात कह लेंगे 
miss you princess Alone boy Kunal gautam

अंदाज़ ए बयाँ...

ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ, भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ. आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की, और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की, कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ. ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ, भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ. छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से, #nojotophoto

read more
 ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की,
और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की,
कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से,

suraj dubey

#2YearsOfNojoto

read more
#2YearsOfNojoto बघेली कविता 


अस गुस्सा लागत ही जब
मेहेरिए गुलती हैं मोबाइल।

भूंख के मारे जिउ छटपटाए
त‌ऊ घिनही नहीं छोड़ती है मोबाइल।

जबहिन देख‌ए तबहिन
उआ मोबाइल म बिजी रह‌ए।

खाना के नाम म आंखी काढंय
धव क‌उने बात से चिढी रह‌ए।

अपना खाए खाए के मोटान रह‌ए
अ हमरे पीछे पड़ी रहय।

सलगा दिन लय राशन पानी
हमरे ऊपर चढ़ीं रहय।

फरमांइस  खातिर जानय हमहीं
होइगा फेर बिहान।

महेरिअन से भगवानव हांरे
इआ जानय सारा जहान।

       ( राइटर सूरज दुबे  ) हास्य कलाकार

suraj dubey

read more
बघेली कविता 


अस गुस्सा लागत ही जब
मेहेरिए गुलती हैं मोबाइल।

भूंख के मारे जिउ छटपटाए
त‌ऊ घिनही नहीं छोड़ती है मोबाइल।

जबहिन देख‌ए तबहिन
उआ मोबाइल म बिजी रह‌ए।

खाना के नाम म आंखी काढंय
धव क‌उने बात से चिढी रह‌ए।

अपना खाए खाए के मोटान रह‌ए
अ हमरे पीछे पड़ी रहय।

सलगा दिन लय राशन पानी
हमरे ऊपर चढ़ीं रहय।

फरमांइस  खातिर जानय हमहीं
होइगा फेर बिहान।

महेरिअन से भगवानव हांरे
इआ जानय सारा जहान।

       ( राइटर सूरज दुबे) ) हास्य कलाकार
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile