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जीtendra

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सदा भवानी वाहिनी गौरी पुत्र गणेश, साथ देव रक्षा करें ब्रह्मा,विष्णु ,महेश...💓 . मंगलाचरण का प्रारम्भ तुलसीदास जी ने दोहा/सोरठा रूप में ऐसे किया है... जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।। (बालकाण्ड) #Love #History #Religion #nojotoLove #ganesha #shivaki #indianhistory

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प्रथमेश..💓🙏 सदा भवानी वाहिनी गौरी पुत्र गणेश,
साथ देव रक्षा करें ब्रह्मा,विष्णु ,महेश...💓
.
मंगलाचरण का प्रारम्भ तुलसीदास जी ने दोहा/सोरठा रूप में ऐसे किया है...

जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। 
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
(बालकाण्ड)

writer_Gourav94_official

-विश्वास- एक बहुत समय पुरानी बात है। एक था राजकुमार जिसका नाम था नील ओर एक थी राजकुमारी जिसका नाम था नीलम। वो दोनों बचपन से ही एक-दूजे से बहुत प्रेम करते थे। वक़्त गुजरा ओर युवा होते ही उन दोनो ने विवाह भी कर लिया। वे अपने वैवाहिक जीवन मे बहुत खुश थे। नील भी नीलम को बहुत स्नेह करते थे। उनका प्रेम-जीवन सफल हो चुका था। कहते है प्रेम परीक्षा अवश्य लेता है। एक दिन हुआ यूं राजकुमारी नीलम ने वन भ्रमण की इच्छा प्रकट की। नील ने भी बिना विलंब किये रथ मँगवाया ओर दोनों वन भ्रमण को चले गए। वन में घूमते-घूमते नीलम को प्यास लगी। नील ने देखा नीचे एक नदी बह रही है,नील राजकुमारी को रथ में अकेला छोड़ नीचे नदी पर जल भरने गए। अचानक वहाँ से एक दूसरे देश का राजकुमार गुजर रहा था। उसकी नजर नीलम पर पड़ी और वो उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया। उसने नीलम को जोर जोर से हँसी आने वाली जड़ी-बूटी सुंघाई ओर जबरन उठाकर ले जाने लगा। इतने में राजकुमार नील भी जल लेकर आ चुके थे। जड़ी-बूटी के प्रभाव से नीलम अपनी याद्दाश्त भूल चुकी थी और अपनी हँसी नही रोक पा रही थी। नील को लगा नीलम तो बिना मुझे आवाज दिए खुशी से इस युवक के साथ जा रही है,उनको लगा नीलम ने उनके साथ छल किया है,ओर उन्होंने विरह-पीर में अपने प्राण त्याग दिए। उधर उस राजकुमार ने राजकुमारी का शोषण किया और उसे जंगल मे अकेला छोड़ दिया। जब नीलम को होश आया तो वो खुद को इस हाल में देख रोने लगती है,उसके दिल मे खयालो का भूचाल आता है, वो सोचती है कि नील ने मुझे बचाया क्यो नही,वो क्यो खड़े-खड़े देखते रहे। में जड़ी-बुटी के प्रभाव से होश में नही थी पर क्या उनको भी मुझ पर विश्वास नही है। लूटी हुई आबरू लेकर नील के पास जाना उसने उचित न समजा ओर नील को तो मेरे प्रेम पर विश्वास तक नही ऐसा सोचकर उसने भी अपने प्राण दे दिए। #कहानी #प्रेमकहानी #मेरिकहानी

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-विश्वास-
हो वक़्त तो पड़ना जरूर दासता ये इश्क़  की,
जूठी ही सही पर इम्तहाँ है ये आज के दौर की।

आपका अपना
Gourav Goswami -विश्वास-
एक बहुत समय पुरानी बात है। एक था राजकुमार जिसका नाम था नील ओर एक थी राजकुमारी जिसका नाम था नीलम। वो दोनों बचपन से ही एक-दूजे से बहुत प्रेम करते थे। वक़्त गुजरा ओर युवा होते ही उन दोनो ने विवाह भी कर लिया। वे अपने वैवाहिक जीवन मे बहुत खुश थे। नील भी नीलम को बहुत स्नेह करते थे। उनका प्रेम-जीवन सफल हो चुका था।

कहते है प्रेम परीक्षा अवश्य लेता है। एक दिन हुआ यूं राजकुमारी नीलम ने वन भ्रमण की इच्छा प्रकट की। नील ने भी बिना विलंब किये रथ मँगवाया ओर दोनों वन भ्रमण को चले गए। वन में घूमते-घूमते नीलम को प्यास लगी। नील ने देखा नीचे एक नदी बह रही है,नील राजकुमारी को रथ में अकेला छोड़ नीचे नदी पर जल भरने गए।
अचानक वहाँ से एक दूसरे देश का राजकुमार गुजर रहा था। उसकी नजर नीलम पर पड़ी और वो उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया। उसने नीलम को जोर जोर से हँसी आने वाली जड़ी-बूटी सुंघाई ओर जबरन उठाकर ले जाने लगा। इतने में राजकुमार नील भी जल लेकर आ चुके थे। जड़ी-बूटी के प्रभाव से नीलम अपनी याद्दाश्त भूल चुकी थी  और अपनी हँसी नही रोक पा रही थी। नील को लगा नीलम तो बिना मुझे आवाज दिए खुशी से इस युवक के साथ जा रही है,उनको लगा नीलम ने उनके साथ छल किया है,ओर उन्होंने विरह-पीर में अपने प्राण त्याग दिए।

उधर उस राजकुमार ने राजकुमारी का शोषण किया और उसे जंगल मे अकेला छोड़ दिया। जब नीलम को होश आया तो वो खुद को इस हाल में देख रोने लगती है,उसके दिल मे खयालो का भूचाल आता है, वो सोचती है कि नील ने मुझे बचाया क्यो नही,वो क्यो खड़े-खड़े देखते रहे। में जड़ी-बुटी के प्रभाव से होश में नही थी पर क्या उनको भी मुझ पर विश्वास नही है। लूटी हुई आबरू लेकर नील के पास जाना उसने उचित न समजा ओर नील को तो मेरे प्रेम पर विश्वास तक नही ऐसा सोचकर उसने भी अपने प्राण दे दिए।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना

'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।

राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

Hasanand Chhatwani

जो भ्रम में रहेगा,
उसे भ्रमण करना ही होगा अभी दुनिया में...
  फिर चौरासी में। #भ्रम#भ्रमण#

Vishal Patni

nojoto #Quote

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एक विनती:
घास मैं चलना,य़ा खेलना रोके:
जब हम और आप घास पर चलते हैँ,उस समय कितने ही ज़िव की हत्या होती हैँ,जो घास मैं भ्रमण करते हैँ,वो कुचल कर मर जाते हैँ य़ा अधमरे हो कर कितने ही दिन बाद तड़प-तड़प के मरते हैँ.....एक बार घास के नीचे देखे,तब आपको पता चलेगा कितने ज़िव घास मैं भ्रमण करते हैँ.... #nojoto

parth gaurav

औकात।

कुछ अच्छा लिखने चली थी मेरी कलम।
बस तुम पर आकर अटक गई।

कुछ सुंदर खोजने चली थी मेरी नज़र।
बस तुम पर आकर अटक गई।

कुछ मधुर श्रवण चाहते थे मेरे कर्ण।
बस तुम पर आकर अटक गए।

विश्व भ्रमण चाहते थे मेरे कदम।
बस तुम पर आकर अटक गए।

कलम ने अपना खूब साथ निभाया।
नज़रों ने भी बस तुमको ही तराशा।
कर्ण तो बस तुम्हारा नाम सुनते ही रह गए।
कदमों की क्या कहे।
अभी अभी आपकी आत्मा भ्रमण कर के लौटे हैं।

बस एक मुख ने ही नमक हरमी की।
बहुत कुछ चाह कर भी कुछ कह ना सकी।

                      
                      क्यों??

क्योंकि बात औकात पर आकर अटक गई।।
                         औकात।

कुछ अच्छा लिखने चली थी मेरी कलम।
बस तुम पर आकर अटक गई।

कुछ सुंदर खोजने चली थी मेरी नज़र।
बस तुम पर आकर अटक गई।

कुछ मधुर श्रवण चाहते थे मेरे कर्ण।
बस तुम पर आकर अटक गए।

विश्व भ्रमण चाहते थे मेरे कदम।
बस तुम पर आकर अटक गए।

कलम ने अपना खूब साथ निभाया।
नज़रों ने भी बस तुमको ही तराशा।
कर्ण तो बस तुम्हारा नाम सुनते ही रह गए।
कदमों की क्या कहे।
अभी अभी आपकी आत्मा भ्रमण कर के लौटे हैं।

बस एक मुख ने ही नमक हरमी की।
बहुत कुछ चाह कर भी कुछ कह ना सकी।

                      
                      क्यों??

क्योंकि बात औकात पर आकर अटक गई।।

pragati singh

Mother's day celebrations

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दिखावे की दुनिया में माँ को ना घसीटो तुम 
माँ के प्यार को कोई त्यौहार ना समझो तुम,
माँ के लिए तो खुदा भी ना कुछ कह पाया है 
बस मै माँ में समाहित हु इतना ही बताया है,
दिखावे की दुनिया में माँ को ना घसीटो तुम,
माँ के प्यार को बया करने के लिए कोई शब्द नहीं है,
इनके लिए तो भगवान ने कहा माँ के लिए हम निशब्द है
माँ तो वो हस्ती है जिसमें
दुनिया बसती है,
माता पिता को मोल उस दिन कार्तिक को समझ आया,
जब वो पूरी दुनिया का भ्रमण करके भी कुछ हासिल ना कर पाया
और गणेश ने माता पिता का भ्रमण करके माता पिता का मान बढाया
और सृष्टि को ये रास्ता दिखाया  ,,,,, lll Mother's day celebrations


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