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"Vibharshi" Ranjesh Singh

जब ना सत था , ना असत था
जब ना कोई रज था, ना व्योम
 जब ना थी कोई ध्वनि, ना ॐ। 
फिर किस तत्व ने श्रृष्टि बनाई ?
  और उस तत्व को बनाया कौन?
 उसकी जननी कौन, जनक कौन ?

जब ना मृत्यु थी, ना उसका अभाव
 जब ना था रात और दिन का प्रभाव
  था कुछ जो अनादि था, स्वयंभू था 
  स्वध्या ही होना था उसका स्वभाव

  जब अंधकार सा था पर  था उससे गहरा
 जिसका हर जगह लगा हुआ था पहरा 
  था शून्य सा शायद,हमारे समझ से परे 
 जो था सब था उस तत्व के इर्द गिर्द पड़े 
फिर उसी तत्व से जन्म हुआ महत का
 जिससे बाद में जन्म हुआ सत,असत का

 जैसे हमारे  मन के अंदर है इच्छाएं वर्तमान
  उसी प्रकार महत में इच्छाएं उत्पन्न हुई फिर 
  इच्छाओं से कालांतर में हुआ सबका निर्माण


एक विस्फोट हुआ फिर रश्मियां फैली चारो ओर
कुछ ऊपर गई, कुछ नीचे गई, पहुंच गई हर छोर
 इच्छाएं बंधने लगी फिर आपस में,जिससे कण बने 
पदार्थ बना, अंतरिक्ष बना ,गुरुत्व बना और क्षण बने
तारे बने, सितारे बने, ग्रह बने, वायु बना और जीवन बने 

पर वह तत्व कैसे बना जो था शुरू से विद्धमान
कौन जानता है शुरू से की कैसे हुई श्रृष्टि निर्माण
कौन है जो प्रवचन दे इस पर ,किसपे है इतना ज्ञान 

देवता भी बता ना पाएंगे, शुरू से थे नही वो भी वर्तमान 
देवता हो या ऋषिगण,वो बस लगा पाएंगे केवल अनुमान

©"Vibharshi" Ranjesh Singh #watchtower #ऋग्वेद #Nasadiyasukta

Durga Banwasi Shiwakoti

#ऋग्वेद प्रथम सूक्ति #पौराणिककथा

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

म॒नु॒ष्वद॑ग्ने अङ्गिर॒स्वद॑ङ्गिरो ययाति॒वत्सद॑ने पूर्व॒वच्छु॑चे।
 अच्छ॑ या॒ह्या व॑हा॒ दैव्यं॒ जन॒मा सा॑दय ब॒र्हिषि॒ यक्षि॑ च प्रि॒यम् ॥

पद पाठ
म॒नु॒ष्वत्। अ॒ग्ने॒। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अ॒ङ्गि॒रः॒। य॒या॒ति॒ऽवत्। सद॑ने। पू॒र्व॒ऽवत्। शु॒चे॒। अच्छ॑। या॒हि॒। आ। व॒ह॒। दैव्य॑म्। जन॑म्। आ। सा॒द॒य॒। ब॒र्हिषि॑। यक्षि॑। च॒। प्रि॒यम् ॥


हे (शुचे) पवित्र (अङ्गिरः) प्राण के समान धारण करनेवाले (अग्ने) विद्याओं से सर्वत्र व्याप्त सभाध्यक्ष ! आप (मनुष्वत्) मनुष्यों के जाने-आने के समान वा (अङ्गिरस्वत्) शरीरव्याप्त प्राणवायु के सदृश राज्यकर्म व्याप्त पुरुष के तुल्य वा (ययातिवत्) जैसे पुरुष यत्न के साथ कामों को सिद्ध करते कराते हैं वा (पूर्ववत्) जैसे उत्तम प्रतिष्ठावाले विद्वान् विद्या देनेवाले हैं, वैसे (प्रियम्) सबको प्रसन्न करनेहारे (दैव्यम्) विद्वानों में अति चतुर (जनम्) मनुष्य को (अच्छ) अच्छे प्रकार (आयाहि) प्राप्त हूजिये, उस मनुष्य को विद्या और धर्म की ओर (वह) प्राप्त कीजिये तथा (बर्हिषि) (सदने) उत्तम मोक्ष के साधन में (आसादय) स्थित और (यक्षि) वहाँ उसको प्रतिष्ठित कीजिये ॥ 

O (pure) Holy (Agirah), the Speaker of the pervading pervades from (Agni) disciplines, who are like life.  You (manvatva) like men come and go (aagirvatvat), like a person who is like a man of life (vyavrishvat).  , (Priyam) to please everyone (among the scholars), the very clever (janam) man should get (good) good kind (ayahi), get that man towards education and religion (he) and (barhishi) (sadhana)  ) Situated in the means of perfect salvation (Asadya) and (Yakshi) place it there.

( ऋग्वेद १.३१.१७ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #परमात्मा

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः । 
ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥

पद पाठ
त्रिः । नः॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । दि॒व्यानि॑ । भे॒ष॒जा । त्रिः । पार्थि॑वान् । त्रिः । ऊँ॒ इति॑ । द॒त्त॒म् । अ॒त्भ्यः । ओ॒मान॑म् । श॒म्योः । मम॑काय । सू॒नवे॑ । त्रि॒धातु॑ । शर्म॑ । व॒ह॒त॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑॥

मनुष्यों को चाहिये कि जो जल और पृथिवी में उत्पन्न हुई रोग नष्ट करनेवाली औषधी हैं उनका एक दिन में तीन बार भोजन किया करें और अनेक धातुओं से युक्त काष्ठमय घर के समान यान को बना उसमें उत्तम-२ जव आदि औषधी स्थापन अग्नि के घर में अग्नि को काष्ठों से प्रज्वलित जल के घर में जलों को स्थापन भाफ के बल से यानों को चला व्यवहार के लिये देशदेशान्तरों को जा और वहां से आकर जल्दी अपने देश को प्राप्त हों इस प्रकार करने से बड़े-२ सुख प्राप्त होते हैं ॥

Humans should eat food that is a disease-destroying drug produced in water and earth three times in a day and make a vehicle like a wooden house with many metals, making the best medicine in it, setting fire in the house of fire.  Place the waters in the house of water ignited by wood, go abroad to the countries for the practice of running the vehicles with the help of force, and come from there and get to your country quickly, in this way, you get great happiness.

( ऋग्वेद १.३४.६ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

हं॒साइ॑व श्रेणि॒शो यता॑नाः शु॒क्रा वसा॑नाः॒ स्वर॑वो न॒ आगुः॑।
 उ॒न्नी॒यमा॑नाः क॒विभिः॑ पु॒रस्ता॑द्दे॒वा दे॒वाना॒मपि॑ यन्ति॒ पाथः॑॥

पद पाठ
हं॒साःऽइ॑व। श्रे॒णि॒शः। यता॑नाः। शु॒क्राः। वसा॑नाः। स्वर॑वः। नः॒। आ। अ॒गुः॒। उ॒त्ऽनी॒यमा॑नाः। क॒विऽभिः॑। पु॒रस्ता॑त्। दे॒वाः। दे॒वाना॑म्। अपि॑। य॒न्ति॒। पाथः॑॥

 जो हंसों के तुल्य मिल के प्रयत्न से सबकी उन्नति कर अपने आप उन्नति को प्राप्त हुए आप्त सत्यवादियों के मार्ग में चल के पराक्रम बढ़ाते हैं, वे ही पूर्ण सुख को भोगते हैं ॥

Those who, by the efforts of the mill like the swans, advance their own progress and increase their power by walking in the path of the sentimentalists, they enjoy complete happiness.

( ऋग्वेद ३.८.९ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #हंश

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

तिस्रो वाच ईरयति प्र वह्निरृतस्य धीतिं ब्रह्मणो मनीषाम् । 
गावो यन्ति गोपतिं पृच्छमानाः सोमं यन्ति मतयो वावशानाः ॥

पद पाठ
ति꣣स्रः꣢ । वा꣡चः꣢꣯ । ई꣣रयति । प्र꣢ । व꣡ह्निः꣢꣯ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । धी꣣ति꣢म् । ब्र꣡ह्म꣢꣯णः । म꣣नीषा꣢म् । गा꣡वः꣢꣯ । य꣣न्ति । गो꣡प꣢꣯तिम् । गो । प꣣तिम् । पृच्छ꣡मा꣢नाः । सो꣡म꣢꣯म् । य꣣न्ति । म꣡त꣢यः । वा꣣वशानाः꣢ ॥

कोई विरले ही रससिद्ध कवि अभिधा, लक्षणा, व्यञ्जनावाली गद्य, पद्य, उभय रूप वाणी को प्रयुक्त करते हुए सात्त्विक, शान्तरसमय ब्रह्मस्तोत्रों को रचकर अपनी वाणी को कृतकृत्य करते हैं ॥

Rarely, the poet, Abhidha, Lakshana, Vyjjnavali prose, Padya, using the utterance of the vowel form, make his voice thankful by creating sattvik, shantarasamaya brahmastotras.

( सामवेद मंत्र ८५९ ) #वेद #ऋग्वेद #कवि #मातृभाषा #मातृभाषा_दिवस

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

स घा॒ तं वृष॑णं॒ रथ॒मधि॑ तिष्ठाति गो॒विद॑म्। 
यः पात्रं॑ हारियोज॒नं पू॒र्णमि॑न्द्र॒ चिके॑तति॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥

पद पाठ
सः। घ॒। तम्। वृष॑णम्। रथ॑म्। अधि॑। ति॒ष्ठा॒ति॒। गो॒विद॑म्। यः। पात्र॑म्। हा॒रि॒ऽयो॒ज॒नम्। पू॒र्णम्। इ॒न्द्र॒। चिके॑तति। योज॑। नु। इ॒न्द्र॒। ते॒। हरी॒ इति॑ ॥

सेनापति को योग्य है कि शिक्षा बल से हृष्ट-पुष्ट हाथी, घोड़े रथ, शस्त्र-अस्त्रादि सामग्री से पूर्ण सेना को प्राप्त करके शत्रुओं को जीता करे ॥

The commander is eligible to win the enemies by acquiring a full army of strong elephants, horse chariots, weapons and weapons with the help of education force.

( ऋग्वेद १.८२.४ ) #ऋग्वेद #वेद #सेनापति #युद्ध

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

ए॒वा ते॑ अग्ने सुम॒तिं च॑का॒नो नवि॑ष्ठाय नव॒मं त्र॒सद॑स्युः।
 यो मे॒ गिर॑स्तुविजा॒तस्य॑ पू॒र्वीर्यु॒क्तेना॒भि त्र्य॑रुणो गृ॒णाति॑ ॥

पद पाठ
ए॒व। ते॒। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽम॒तिम्। च॒का॒नः। नवि॑ष्ठाय। न॒व॒मम्। त्र॒सद॑स्युः। यः। मे॒। गिरः॑। तु॒वि॒ऽजा॒तस्य॑। पू॒र्वीः। यु॒क्तेन॑। अ॒भि। त्रिऽअ॑रुणः। गृ॒णाति॑ ॥


हे विद्वन् ! आप और मैं जो हमारे समीप से गुणों के ग्रहण करने की इच्छा करता है, उसको हम दोनों विद्याग्रहण करावें ॥

Hey scholar!  Both of you and I, who wish to receive qualities from near us, should offer education to him.

( ऋग्वेद ५.२७.३ ) #ऋग्वेद #वेद #शिक्षा #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

बृ॒हत्स्वश्च॑न्द्र॒मम॑व॒द्यदु॒क्थ्य१॒॑मकृ॑ण्वत भि॒यसा॒ रोह॑णं दि॒वः।
 यन्मानु॑षप्रधना॒ इन्द्र॑मू॒तयः॒ स्व॑र्नृ॒षाचो॑ म॒रुतोऽम॑द॒न्ननु॑ ॥

पद पाठ
बृ॒हत्। स्वऽच॑न्द्रम्। अम॑ऽवत्। यत्। उ॒क्थ्य॑म्। अकृ॑ण्वत। भि॒यसा॑। रोह॑णम्। दि॒वः। यत्। मानु॑षऽप्रधनाः। इन्द्र॑म्। ऊ॒तयः॑। स्वः॑। नृ॒ऽसाचः॑। म॒रुतः॑। अम॑दन्। 
अनु॑ ॥

विद्याधन, राज्य, पराक्रम, बल वा पुरुषों की सहायता ये सब जिस धार्मिक विद्वान् मनुष्य को प्राप्त होते हैं, उसको उत्तम सुख उत्पन्न कराते हैं ॥

Vidyadhan/education, state, might, strength or the help of men, all these religious scholars, who get the man, make him happy.

( ऋग्वेद १.५२.९ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #सुख #ग्रहण

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

शृङ्गे॑व नः प्रथ॒मा ग॑न्तम॒र्वाक्छ॒फावि॑व॒ जर्भु॑राणा॒ तरो॑भिः।
 च॒क्र॒वा॒केव॒ प्रति॒ वस्तो॑रुस्रा॒ऽर्वाञ्चा॑ यातं र॒थ्ये॑व शक्रा॥

पद पाठ
शृङ्गा॒ऽइव। नः॒। प्र॒थ॒मा। ग॒न्त॒म्। अ॒र्वाक्। श॒फौऽइ॑व। जर्भु॑राणा। तरः॑ऽभिः। च॒क्र॒वा॒काऽइ॑व। प्रति॑। वस्तोः॑। उ॒स्रा॒। अ॒र्वाञ्चा॑। या॒त॒म्। र॒थ्या॑ऽइव। श॒क्रा॒॥

यदि अग्नि-वायु शिल्प कार्यों में संयुक्त किये जावें तो बहुत कार्य्यों को सिद्ध करें ॥

If fire-air , crafts are combined in works then prove many tasks.

( ऋग्वेद मंत्र २.३९.३ ) #ऋग्वेद #वेद #वायु #अग्नि
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