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Best अपवित्र Shayari, Status, Quotes, Stories

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I_surbhiladha

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Shashi Aswal

रजस्वला के समय औरत को अपवित्र माना जाता हैं।
तो क्या उसी कोख में अपवित्र स्थान में नौ महीने रहकर भगवान भी क्या अपवित्र हो जाते हैं...??? #YQbaba #YQDidi #अपवित्र #aurat
PC:-google

TARUN KUMAR VIMAL

अगर #पवित्र और #अपवित्र की बात की जाए तो, !दुनिया की सबसे अपवित्र चीज़ #रुपया है, क्या कोई #मंदिर #मस्जिद इसे लेने से मना करता है. #tarun_kumar_vimal #Wall #Life_experience

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"अगर पवित्र और अपवित्र की बात की जाए तो, 
दुनिया की सबसे अपवित्र चीज़ रुपया है, 
क्या कोई मंदिर मस्जिद इसे लेने से मना करता है."
Good morning 
#tarun_kumar_vimal अगर #पवित्र और #अपवित्र की बात की जाए तो, 
!दुनिया की सबसे अपवित्र चीज़ #रुपया है, 
क्या कोई #मंदिर #मस्जिद इसे लेने से मना करता है.
#tarun_kumar_vimal 
#Wall

भानु

महज़ बारह या तेरह साल की उम्र से
वेदना ,पीड़ा,अपमान हर माह सहती है
पुरुषों पर दोष क्या और क्यों मढ़े
एक स्त्री खुद,खुद को अपवित्र कहती है
है शाश्वत सत्य यह,जानती पूरी सृष्टि है
इस अपवित्रता से ही वो माँ बनती है
नौ महीने अपवित्र कोख में रखकर
एक "पवित्र" पुरुष को वो जन्मती है
एक संतान के लिए कई वर्षों की
तपस्या निरन्तर चलती रहती है
महज नौ का नहीं होता सफ़र माँ का
न नौ माह में एक जान मिलती है
बारह या तेरह वर्ष की छोटी उम्र से
वो इस लंबे सफर पर चल पड़ती है
ख़तम नहीं होता जन्म पर सफर
माँ आखरी सांस तक माँ रहती है
वेदना,पीड़ा,अपवित्रता हर  माह की
चालीस-पैंतालीस तक वो सहती है
इतने लंबे सफर और इतने दर्द के बाद
हर माह कुछ दिन वो अपवित्र रहती है #माहवारी #अपवित्र #मातृ #माहवारी_नहीं_मातृत्व

भोजराज सिंह

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आयुष पंचोली

दुनिया मे मृत्यू ही एक मात्र पवित्र संस्कार हैं, जो किसी मे भेद नही करती। जात, पात, रंग-भेद, ऊंच, नीच, साधु, राक्षस किसी मे भी नही। और एक विचित्र बात देखो शम्शान को दुनिया अपवित्र मानती हैं, मगर मृत्यू के शम्शान की कोई भौ क्रिया बिना स्नान और नये वस्त्रो के बिना सम्पन्न नही होती। बाकी कही भी स्नान और वस्त्रो का महत्व तक नही। पता नही क्यो, मगर मेरी नजर मे तो दुनिया मे सबसे पवित्र संस्कार मृत्यू और पवित्र स्थान श्मशान ही हैं। क्योकी वह स्थान जहां सारे बंधन छूट जाये, जो ज्ञान और वैराग्य जगाये , जहा #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #mereprashnmerisoch

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दुनिया मे मृत्यू ही एक मात्र पवित्र संस्कार हैं, जो किसी मे भेद नही करती। जात, पात, रंग-भेद, ऊंच, नीच, साधु, राक्षस किसी मे भी नही।
और एक विचित्र बात देखो शम्शान को दुनिया अपवित्र मानती हैं, मगर मृत्यू के शम्शान की कोई भौ क्रिया बिना स्नान और नये वस्त्रो के बिना सम्पन्न नही होती। बाकी कही भी स्नान और वस्त्रो का महत्व तक नही।
पता नही क्यो, मगर मेरी नजर मे तो दुनिया मे सबसे पवित्र संस्कार मृत्यू और पवित्र स्थान श्मशान ही हैं। क्योकी वह स्थान जहां सारे बंधन छूट जाये, जो ज्ञान और वैराग्य जगाये , जहां सत्य की पहचान हो वह कभी अपवित्र नही हो सकता। 

©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan  #mereprashnmerisoch दुनिया मे मृत्यू ही एक मात्र पवित्र संस्कार हैं, जो किसी मे भेद नही करती। जात, पात, रंग-भेद, ऊंच, नीच, साधु, राक्षस किसी मे भी नही।
और एक विचित्र बात देखो शम्शान को दुनिया अपवित्र मानती हैं, मगर मृत्यू के शम्शान की कोई भौ क्रिया बिना स्नान और नये वस्त्रो के बिना सम्पन्न नही होती। बाकी कही भी स्नान और वस्त्रो का महत्व तक नही।
पता नही क्यो, मगर मेरी नजर मे तो दुनिया मे सबसे पवित्र संस्कार मृत्यू और पवित्र स्थान श्मशान ही हैं। क्योकी वह स्थान जहां सारे बंधन छूट जाये, जो ज्ञान और वैराग्य जगाये , जहा

KD

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कभी कोई स्त्री अपवित्र नहीं होती ,होती है  तो उन धर्म के पुजारियों और उनपे आंख मुदके भेड़ों के भाती के मानव की जो उसी स्त्री को नवरात्रि के समय देवी का रूप बताते है और उसी देवी को अपवित्र बोलते है ।।

Rohit Sharma

हर महीने उसके वो पाँच दर्द भरे दिन,
जिनको तुम कहते हो वो अपवित्र हैं,
शायद अपवित्र वो नहीं, तुम्हारी सोच हैं,
उसे तो पीड़ा दी हैं, उस भगवान् ने,
जिसकी वजह से तुम्हारा वजूद हैं,
अगर उसके ज़िस्म में वो पांच दिन ना रहे,
तो शायद सृष्टि का की अंश ना हो,
तुमने जिससे जन्म लिया, तुमने उसे ही अपवित्र बता दिया,
उसके ज़िस्म ने सह लिया उसके दर्द को,
तो क्यों वो तुम्हारी गन्दी मानसिकता को सहे वो.....! #nojoto #periods #mentality #kavishala

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 9 - श्रद्धा की जय आज की बात नहीं है; किंतु है इसी युगकी क्या हो गया कि इस बात को कुछ शताब्दियाँ बीत गयी। कुलान्तक्षेत्र (कुलू प्रदेश) वही है, व्यास ओर पार्वती की कल-कल-निदनादिनी धाराएँ वही हैं और मणिकर्ण का अर्धनारीश्वर क्षेत्र तो कहीं आता-जाता नहीं है। कुलू के नरेश का शरीर युवावस्था में ही गलित कुष्ठ से विकृत हो गया था। पर्वतीय एवं दूरस्थ प्रदेशों के चिकित्सक व्याधि से पराजित होकर विफल-मनोरथ लौट चुके थे। क्वाथा-स्नान , चूर्ण-भस्म, रस-रसायन कुछ भी तो कर सका होता। नरेश न उच्छृं #Books

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|| श्री हरि: ||
9 - श्रद्धा की जय

आज की बात नहीं है; किंतु है इसी युगकी क्या हो गया कि इस बात को कुछ शताब्दियाँ बीत गयी। कुलान्तक्षेत्र (कुलू प्रदेश) वही है, व्यास ओर पार्वती की कल-कल-निदनादिनी धाराएँ वही हैं और मणिकर्ण का अर्धनारीश्वर क्षेत्र तो कहीं आता-जाता नहीं है।

कुलू के नरेश का शरीर युवावस्था में ही गलित कुष्ठ से विकृत हो गया था। पर्वतीय एवं दूरस्थ प्रदेशों के चिकित्सक व्याधि से पराजित होकर विफल-मनोरथ लौट चुके थे। क्वाथा-स्नान , चूर्ण-भस्म, रस-रसायन कुछ भी तो कर सका होता।

नरेश न उच्छृं


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