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बेजुबान शायर shivkumar
शीश पर चंद्र विराजे, मां चंद्रघंटा कहलाती । तृतीय रुप में माता, जग में बड़ी सुहाती ।। अलौकिक, अविकारी, मां है कल्याणकारी । जब भी भक्त पुकारे, आ जाती मां हमारी ।। जब-जब संकट आया, देवों ने मां को बुलाया । एक पुकार पर मां ने, हर संकट दूर भगाया ।। दैत्यों के है संहारकारी , भक्तों के लिए है प्यारी l बड़ी ही करुणामयी है, जगजननी मां हमारी ।। ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 #नवरात्रि शीश पर #चंद्र विराजे, मां #चंद्रघंटा कहलाती । तृतीय रुप में #माता , जग में बड़ी सुहाती ।। #अलौकिक , #अविकारी , मां है कल्याणकारी ।
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read moreAmit Singhal "Aseemit"
राधा और कृष्ण का प्रेम सदैव रहा अलौकिक, इस संबंध का कोई आधार नहीं रहा था तार्किक। यह केवल हृदय से हृदय का गहरा रहा संबंध, किसी रीति और प्रथा का नहीं था कोई अनुबंध। ©Amit Singhal "Aseemit" #अलौकिक
Pallavi
कुछ लोगों से मिलकर अपनापन सा लगता है खोया हुआ अपना कोई लौट आया सा लगता है.... पल भर बस बात करने से जिनके मन महक सा जाता है कुछ लोगो से रिश्ता भी कुछ अनोखा सा लगता है..... अजनबी होकर भी जो अपने से लगते हैं पहली बार मिलकर भी जिनसे अपनापन सा लगता है.... लगता है जैसे इनसे नाता कोई गहरा सा है या जैसे कोई रिश्ता इनसे लगता बहुत पुराना सा है.... ना जाने कैसे कभी किसी से इतना लगाव सा लगता है की अजनबी होकर भी कोई बेहद खास सा लगता है.... ©Pallavi Mamgain #delusion #Connection #अलौकिक #Divine
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read moreLOL
प्रेम कविताएं पढ़ना उतना ही अलौकिक है जितना कि.. प्रेम में पड़ना ©KaushalAlmora #प्रेम #love #रोजकाडोजwithkaushalalmora #kaushalalmora #yqdidi #yqbaba #अलौकिक #कविता
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read moreAnjali Jain
प्यारी सीता, तुम पर बहुत अभिमान है पर इस अभिमान को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त शब्द नहीं हैं! सारी सुख - सुविधाओं को छोड़ दें, लेकिन जो मानसिक यातना व कष्ट तुमने सहे, उनके लिए अयोध्या अक्षम्य है इससे यह तो सिद्ध होता है कि स्त्री अपने कष्टों में बिल्कुल अकेली है! कोई परिवार, कोई समाज,कोई बंधु - बांधव उसके साथ नहीं होता! चाहे वह सीता रही हो या द्रोपदी! सीता, तुम्हारी असीम पीड़ा को समझने के लिए भी हृदय चाहिए! सुकोमल सीता ने वज्र जैसा हृदय बनाकर, पुत्रों का मोह त्यागकर, दृढ़तापूर्वक धरती मां की गोद में जाने का जो निर्णय लिया, वह अहो! अहो! तुम्हारी इस कठोरता ने हृदय और आत्मा को असीम शांति और शीतलता प्रदान की, सारे कष्टों को झुलसन जैसे शीतल हो गई! स्त्री चुपचाप सहन करती है उसका आशय यह तो नहीं कि उसकी सहनशीलता की कोई सीमा नहीं, एक सीमा के बाद उसका हृदय सचमुच वज्र बन जाता है! पुरुष और समाज पहला निर्णय कर सकता है पर अंतिम निर्णय तो उसीका होगा! राम, उस समय तुम कितने अकेले थे? ये परिवार, ये समाज क्या उस दुख को दूर कर सकते थे, जिस समाज के लिए तुमने निर्दोष और महान सीता का साथ छोड़ दिया था! #अलौकिक सीता #03.05.20
#अलौकिक सीता 03.05.20
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