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Anjali Srivastav

मेरे होठों पे खिलखिलाती है । और चहरे से झिलमिलाती है । एक मस्ती में डूब जाती हूँ , याद जब - जब भी उनकी आती है।। #अंजली #श्रीवास्तव poem  #शायरी

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मेरे होठों पे खिलखिलाती है ।
और चहरे से झिलमिलाती  है ।
एक मस्ती में डूब  जाती हूँ ,
याद जब - जब भी उनकी आती है।।
अंजली श्रीवास्तव

©Anjali Srivastav मेरे होठों पे खिलखिलाती है ।
और चहरे से झिलमिलाती  है ।
एक मस्ती में डूब  जाती हूँ ,
याद जब - जब भी उनकी आती है।।
#अंजली #श्रीवास्तव
#poem 

कर्म गोरखपुरिया

रचनाकार आलोक श्रीवास्तव जी की रचना बाबू जी को जितनी बार पढ़ लिजिए मन नहीं भरता बाबू जी का स्मरण कराने वाली अद्भुत रचना पढ़िए और लुप्त उठाइए #आलोक #श्रीवास्तव #रचना #Poetry

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रचनाकार || आलोक श्रीवास्तव

©काम भक्त कवि [आशीष मिश्रा] रचनाकार आलोक श्रीवास्तव जी की रचना बाबू जी को जितनी बार पढ़ लिजिए मन नहीं भरता बाबू जी का स्मरण कराने वाली अद्भुत रचना पढ़िए और लुप्त उठाइए
#आलोक #श्रीवास्तव #रचना

संजय श्रीवास्तव

प्रेम

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प्रेम की परिभाषा 
लिख पाओगे !
थक जाओगे 
मत सोचो बहुत गहराई तक ,
अपने मिलन से जुदाई तक ,
जिसके पास न होने पर 
कमी सी लगती है !
अचानक सोचते हुए 
नमी सी लगती है !!
वहीं से तो पनपती है 
प्रेम की बीजें!
अच्छी लगने लगती हैं 
हर चीजें !
मौसम की पहली बारिश 
लहलहा देती है 
प्रेम के फसल को !
फिर क्या !
लिखी जाती है ई, 
तनहाई मे गजल को !
बहुत दूर बैठे चांद को 
छत पर बुलाकर
सब,शिकवे गिले होते हैं !
अगले ही पल 
दो दिल मिले होते हैं !
बस यही प्रेम
ताउम्र जिंदा रहती है !
ये अलग बात है 
आजकल 
वो कुछ शर्मिंदा रहती है!

संजय श्रीवास्तव 







प्रेम की परिभाषा 
लिख पाओगे !
थक जाओगे 
मत सोचो बहुत गहराई तक ,
अपने मिलन से जुदाई तक ,
जिसके पास न होने पर 
कमी सी लगती है !
अचानक सोचते हुए 
नमी सी लगती है !!
वहीं से तो पनपती है 
प्रेम की बीजें!
अच्छी लगने लगती हैं 
हर चीजें !
मौसम की पहली बारिश 
लहलहा देती है 
प्रेम के फसल को !
फिर क्या !
लिखी जाती है ई, 
तनहाई मे गजल को !
बहुत दूर बैठे चांद को 
छत पर बुलाकर
सब,शिकवे गिले होते हैं !
अगले ही पल 
दो दिल मिले होते हैं !
बस यही प्रेम
ताउम्र जिंदा रहती है !
ये अलग बात है 
आजकल 
वो कुछ शर्मिंदा रहती है!

संजय श्रीवास्तव प्रेम


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