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बात निकले तो तोल कर निकले l हो सके तो टटोल कर निकल

बात निकले तो तोल कर निकले l
हो सके तो टटोल कर निकले ll

कैसे काबू में रखते हम दिल को,
जब गली से वो डोल कर निकले l

खीर हमने पकाई उल्फ़त की,
रंजिशें लोग घोल कर निकले l

हमने बाज़ार में ग़ज़ल रक्खी,
लोग अनमोल बोलकर निकले l

मुश्किलों से ये ज़ख्म तुरपा था,
आप तुरपाई खोल कर निकले l

©सुनील 'विचित्र'
  #ग़ज़ल_विचित्र  
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