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समर्पण (दोहे) रहे समर्पण प्रेम में, ईश्वर दें वरद

समर्पण (दोहे)

रहे समर्पण प्रेम में, ईश्वर दें वरदान।
सुखमय हो जीवन तभी, सभी कहें विद्वान।।

नहीं समर्पण हो अगर, जीवन ये बरबाद।
कलह रहे घर में तभी, कैसे हों आजाद।।

रहे समर्पण भाव जो, जीवन हो आसान।
मुख पर तब मुस्कान हो, है ये ही पहचान।।

अगर समर्पण छूटता, आता है तब क्रोध।
बात बिगड़ जाती तभी, हो जाता फिर बोध।।

नहीं समर्पण जो करें, कहलाते नादान।
मुश्किल में जीवन रहे, है फिर भी ये शान।।

दिखे समर्पण का असर, हुआ नहीं मजबूर।
नहीं गिला कुछ भी रहे, है ये ही दस्तूर।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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समर्पण (दोहे)

रहे समर्पण प्रेम में, ईश्वर दें वरदान।
सुखमय हो जीवन तभी, सभी कहें विद्वान।।

नहीं समर्पण हो अगर, जीवन ये बरबाद।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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