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भोर देख दिशा खो जाऊं, ईश मेरे कैसे तुझे पाऊं? पंक

भोर देख दिशा खो जाऊं,
ईश मेरे कैसे तुझे पाऊं?

पंक्ति छोड़ लफ़्ज़ जो लाऊं,
पापी मैं बन सूफी आऊं।।

तम की राह रोशनी पाऊं,
तुमसे मैं एक हो जाऊं।।

धुंध थामे चलता आऊं,
पर तेरे दर क्या ही लाऊं?

©गुस्ताख़शब्द
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