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मैंने बहुत वक़्त गुज़रा हैं । तुम्हारा इंतज़ार कर

मैंने बहुत वक़्त गुज़रा हैं । 
तुम्हारा इंतज़ार करते-करते ।। 

उन सर्द रातों मे, जहाँ अंधेरे के सिवा मेरा कुछ नहीं । 
मैं खो जाता हूँ बस,खुद से बात करते-करते ।। 

ऐसा नहीं अगर बात कर लेते, तो सुलझता नहीं सब । 
मगर उलझने लगा हूँ,खुद में,खुद से सवाल करते-करते ।।

फ़क़त के वक़्त मेरा ही बुरा था शायद ।
होनी थी,हो गई थी, हो जाती मोहब्बत शायद साथ रहते-रहते ।। 

तुमसे नहीं थी जो वो भी शिकायतें की हैं मैंने । 
थक चुका हूँ अब मैं, तुमको समझाते-समझाते ।। 

ये प्यार, मोहब्बत, वफ़ा और बा-वफ़ा सब तुमसे ही हैं।
बहुत देर लग गई तुम्हें, इंसान समझते-समझते ।। 

जो नहीं हूँ मैं, वैसा भी दिखाया गया हूँ तुम्हें शायद । 
सदियाँ बीता दी हैं मैंने तुम्हारी बात करते-करते ।। 

पूरी हो जाती ये जिंदगी शायद एक-दूसरे के साथ ही । 
बहुत वक़्त बीत गया यूँ तमाशा करते-करते ।। 

ऐसी क्या सज़ा दी तुमने के अब तुम्हें देखना भी मुनासिब नहीं ।
देखो बीता दी मैंने ये जिंदगी बस शराब पीते-पीते ।। 

कल अगर साथ नहीं होगा "जय" तुम्हारे । 
समझ लेना चूम लिया मौत को, तुम्हारा इंतज़ार करते-करते।। 

Jai

©Jayesh gulati
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