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अभी मिलते कहाँ वो किसी से अंदरूनी ख़ुदी क़ैद-ए-नज़

अभी मिलते कहाँ वो किसी से
अंदरूनी ख़ुदी क़ैद-ए-नज़र में रहते
हम सर-ए-मदफ़न के पास हमेशा
गुल लिए आलम-ए-बहर में रहते

अब दर्द नहीं होता दिल-ए-मुर्दा को
बग़ैर उनके हम भी रह-ए-सफ़र में रहते

©विशाल पांढरे
  #separation @broken