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बात-बात पे रोना छोड़ो,बात-बात पर रोना। जीवन सुख-द



बात-बात पे रोना छोड़ो,बात-बात पर रोना।
जीवन सुख-दुःख का है प्यारे,प्यारा एक बिछौना।।

पतझड़ का मतलब न है की, जीवन केवल रीता है।
इसका मतलब केवल न है,समय बुरा ही बीता है।
पतझड़ आकर लाता है,नईं कोपलें शाखों पर
और बसंती मौसम फिर,ख़्वाब भरे कुछ आँखों पर
जीवन केवल पतझड़ न है,है एक बसंती-छौना।

काली-रात अंधेरी है तो,कल सूरज भी आएगा।
इक-सा वक़्त नहीं रहता है,आकर के बतलाएगा।
रात अगर होती है भारी,नई भोर भी फिर होगी।
तमस हमेशा न रह पाता,नई छोर भी फिर होगी।
इस संसार में वक़्त के सब,मानो खेल खिलौना।

फूलों को पाने की चाहत,काँटों से होकर गुजरे।
सुख पाने की झुंझलाहट, दुःख के क़तरे बन बिखरें।
धीरज का बस यही समय है,फल पकने में देरी है।
वक़्त की लाठी न्याय करे है, करती नहीं अंधेरी है।
अच्छे को अच्छा मिलता है, और बुरे को मिले घिनौना।

मन की हसरत केवल है,बस फूलों की बाँह मिले।
हर मंजिल तक जाने वाली,बस सीधी इक राह मिले।
कंकड़-पत्थर वाले रस्ते,पैर पे छाले पड़ जाएँगें।
मंजिल अपनी वो पाएँगें, जो आगे बढ़ जाएँगें।
और खुशी से भर जाएगा,मन का कोना-कोना।

धीरे-धीरे चलना सीखो,धीरे-धीरे ही बढ़ना।
चलो नहीं खरगोश के जैसे, कछुए जैसे तुम चलना।
और सफलता तुम्हें मिलेगी,कहता निश्छल बात यही।
चौबीस कैरेट ख़री-ख़री, निकलेगी सच बात,कही।
हँसने के पहले पड़ता है,बहुत दिनों तक रोना।

वर्तमान को जी भर जीना, और भाव्य की चिंता ना।
जो बीता सकुशल ही बीता, अन्य भाव्य की चिंता ना।
खुशियों में ही कट जाएगा,खुशियों से खुशियाँ मिलती।
मनभावन-बसंत आने पर,बागों की कलियां खिलतीं।
खुशियाँ पाने की ख़ातिर,खुशियाँ पड़ता बोना।

अनिल कुमार निश्छल

©ANIL KUMAR
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