हाँ मैं अल्पमति......... तुम वसुधैव कुटुंबकम का जाप लिए चलते हो, मैंने तुममें अपनी पूरी वसुधा माप ली........ ज्ञान के क्षितिज पर विराजित तुम, कहाँ तुम्हें मैं जान पाऊंगी गृहस्थी पुस्तकालय मेरा घटनाएं पुस्तक और अनुभव पृष्ठभूमि ज्ञान की...... कि मैं ताज नहीं हूँ वन तुलसी अवांछित औषधीय गुण लिए तेरे आँगन निकल आई......... द्वार पर पड़ा वह पायदान. जिस पर रगड़ पग उसे मलिन कर स्वच्छ रख पाते हो गृह की छवि......... हाँ मैं वह छोटा सा कण, वह तृण वह बूंद जो निज अस्तित्व खो कांति, शांति, विशालता, भद्रता,अस्तित्व तक का मूल धारे हूं तुम्हारी....... हाँ मैं अल्पमति.......... @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya हाँ मैं अल्पमति......... तुम वसुधैव कुटुंबकम का जाप लिए चलते हो, मैंने तुममें अपनी पूरी वसुधा माप ली........ ज्ञान के क्षितिज पर विराजित तुम,