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पिता की वेदना चला था घुटनों के बल,घोड़ा बनकर ले बे

पिता की वेदना

चला था घुटनों के बल,घोड़ा बनकर
ले बेटो को उस पर बैठाकर।
घिस घिस पांवो को,खूब कमाया था
तन मन से उसे बेटे पर,खूब लुटाया था।

खुद ने तो पहनी थी फ़टी अंगरखी
ब्रांडेड कपडा दिलाया था बेटे ने
खुद ने तो काम चलाया  चप्पलो से
बूट दिलाया था बेटे ने

खूब लिखाया खूब पढ़ाया
समाज में बड़ा नाम कराया
फिर चढ़ाया था उसे घोड़ी पर
न जाने कितने नोट अवारे थे
बेटे बहू की नई जोड़ी पर

कुछ दिन तो अच्छे से थे बीते
बेटा बहू भी आदर से संग जीते
फिर शुरू होने लगी खटपट
सास बहू में अनबन होती झटपट

फिर भी था विश्वास पिता को
अपने खून के जाए पर
पर वह विश्वास भी जल्दी टूट गया
जब बेटा भी रण में कूद गया

छाती से जिसको रखा लगा था
वो अब छाती पर दलने मूंग लगा था
आप आप से तू तू पर वो आ गया
हिस्सा करने की जिद पर वो आ गया

बेटी को पराये घर भेज दिया
बेटा भी बीबी का होकर रह गया
जिसे पाला था बड़ी आशाएं लगाकर
चला गया वो बुढ़ापे में लात मारकर

माँ भी झर झर आंसू बहाती है
पिता घुट घुट कर रोता है
बुढ़ापे में सेवा के सपने टूट गए
ख़ुशी भरे दिन के सपने पीछे छूट गए

पसरे हुए सन्नाटे में अब वो अकेला रहता है
लगता है ऐसा वो घर खाने को दौड़ता है
दूसरे लोगो के वो ताने भी सहता है
पर मन की वेदना को कैसे किसी से बताता है

जब खुद का ही खून पराया हो गया
 तो वे अपना दर्द किसे सुनावे
माता रोती है अपना मुख सबसे छुपाती है
पर वो पिता अपनी पीड़ किसे बतावे

बाप बना जब सीना गर्व से फुलाया था
थाली बाजी, डोला बाजे
सबका मुह मीठा कराया था

और जब
जब माँ बाप बिस्तर में पड़े थे
बेटा एकबार देखने भी नहीं आया था

रावल सिंह 'बेबाक'

©Rawal Singh Rajpurohit #Fathersday20212022 
#FathersDay #realstory #LoveYouDad #myworld #mywords
पिता की वेदना

चला था घुटनों के बल,घोड़ा बनकर
ले बेटो को उस पर बैठाकर।
घिस घिस पांवो को,खूब कमाया था
तन मन से उसे बेटे पर,खूब लुटाया था।

खुद ने तो पहनी थी फ़टी अंगरखी
ब्रांडेड कपडा दिलाया था बेटे ने
खुद ने तो काम चलाया  चप्पलो से
बूट दिलाया था बेटे ने

खूब लिखाया खूब पढ़ाया
समाज में बड़ा नाम कराया
फिर चढ़ाया था उसे घोड़ी पर
न जाने कितने नोट अवारे थे
बेटे बहू की नई जोड़ी पर

कुछ दिन तो अच्छे से थे बीते
बेटा बहू भी आदर से संग जीते
फिर शुरू होने लगी खटपट
सास बहू में अनबन होती झटपट

फिर भी था विश्वास पिता को
अपने खून के जाए पर
पर वह विश्वास भी जल्दी टूट गया
जब बेटा भी रण में कूद गया

छाती से जिसको रखा लगा था
वो अब छाती पर दलने मूंग लगा था
आप आप से तू तू पर वो आ गया
हिस्सा करने की जिद पर वो आ गया

बेटी को पराये घर भेज दिया
बेटा भी बीबी का होकर रह गया
जिसे पाला था बड़ी आशाएं लगाकर
चला गया वो बुढ़ापे में लात मारकर

माँ भी झर झर आंसू बहाती है
पिता घुट घुट कर रोता है
बुढ़ापे में सेवा के सपने टूट गए
ख़ुशी भरे दिन के सपने पीछे छूट गए

पसरे हुए सन्नाटे में अब वो अकेला रहता है
लगता है ऐसा वो घर खाने को दौड़ता है
दूसरे लोगो के वो ताने भी सहता है
पर मन की वेदना को कैसे किसी से बताता है

जब खुद का ही खून पराया हो गया
 तो वे अपना दर्द किसे सुनावे
माता रोती है अपना मुख सबसे छुपाती है
पर वो पिता अपनी पीड़ किसे बतावे

बाप बना जब सीना गर्व से फुलाया था
थाली बाजी, डोला बाजे
सबका मुह मीठा कराया था

और जब
जब माँ बाप बिस्तर में पड़े थे
बेटा एकबार देखने भी नहीं आया था

रावल सिंह 'बेबाक'

©Rawal Singh Rajpurohit #Fathersday20212022 
#FathersDay #realstory #LoveYouDad #myworld #mywords