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टूटा हुआ तारा (दोहे) टूट रहा तारा कहे, कैसी मुझसे

टूटा हुआ तारा (दोहे)

टूट रहा तारा कहे, कैसी मुझसे आस।
मैं गिरा खुद ऊपर से, कौन रहा है पास।।

गिरता मुझको देख कर, सबको रहती चाह।
माँगे सभी मुराद भी, दिल से कहते वाह।।

पीड़ा को समझें नहीं, हैं बालक नादान।
घर भी अब ये छूटता, रहा नहीं आसान।।

धरती पर जब भी गिरा, समा गया हूँ जान।
कैसी मुझसे कामना, कहाँ रहा सम्मान।।

अद्भुत है ये जिंदगी, अकसर करे कमाल।
मैं भी था समझा नहीं, जिसका मुझे मलाल।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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टूटा हुआ तारा (दोहे)

टूट रहा तारा कहे, कैसी मुझसे आस।
मैं गिरा खुद ऊपर से, कौन रहा है पास।।

गिरता मुझको देख कर, सबको रहती चाह।
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Devesh Dixit

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