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White ये जो रिश्तों भरा झमेला है ये खेल हमने बहुत

White ये जो रिश्तों भरा झमेला है
ये खेल हमने बहुत खेला है।
मेरे हिस्से में आंसू आते रहे
दर्द ही दर्द हमने झेला है।

सुख की चादर सदा सिकुड़ती रही
चांदनी धूप में ठिठुरती रही
रात आंखों में बुझ गई लेकिन
जिंदगी बस यूं ही गुजरती रही।

सदाकत नाव को डुबोती रही
लाज अपना बदन भिगोती रही
मेरी वफा ही बन गई नश्तर
बेवफाई सुई चुभोती रही।

लोग अपना समय बिताते रहे
हम थे पागल जो दिल लगाते रहे
रेलगाड़ी सफर कराती रही
लोग सुविधा से आते जाते रहे।

उसकी आंखों की मैं बिनाई हूं
अपने घर को मैं लौट आई हूं
सीतापुर का वो प्लेन सा कुर्ता
लखनऊ की चिकन कढ़ाई हूं ।

©#काव्यार्पण
  ye Jo rishton bhara jhamela hai by pragya Shukla
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