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मंज़िलों से कह दो मेरी राह तकना छोड़ें, चराग़ों को बु

मंज़िलों से कह दो मेरी राह तकना छोड़ें,
चराग़ों को बुझने की इजाज़त चाहे दे दो ।
कोह-ए-गिराँ से कह दो रोक लें चाहे रस्ता,
शजरों से कह दो साया सर से तुम हटा दो ।
ख़्वाबों के टूट जाएँ मेरी आँखों से सारे रिश्ते,
जिसको भी हो ज़रुरत मेरी नींदें उधार दे दो ।
ना पुकारे अब, किसी दीवार-ओ-दर से कोई,
मेरे ही घर में मुझको क़ैद-ए-दर-ओ-बाम दे दो ।
बिछड़ा जो हमसफ़र, बे-ख़्वाहिश हो गए हम भी,
उम्मीदों को चाहे ना-उम्मीदी का मोड़ दे दो ।
ना रहा वो जो मेरा, क्यों कर मैं रहूँ किसी का,
महफिलें उसको हों सलामत, मुझे कुंज-ए-लहद दे दो ।

कोह-ए-गिराँ ( पर्वत )
शजरों ( पेड़ों )
दर-ओ-दीवार ( दीवारों और दरवाजों )
क़ैद-ए-दर-ओ-बाम ( दरवाजे और छत का कारावास )
कुंज-ए-लहद ( कब्र का कोना )

©Sameer Kaul 'Sagar' #Apocalypse
मंज़िलों से कह दो मेरी राह तकना छोड़ें,
चराग़ों को बुझने की इजाज़त चाहे दे दो ।
कोह-ए-गिराँ से कह दो रोक लें चाहे रस्ता,
शजरों से कह दो साया सर से तुम हटा दो ।
ख़्वाबों के टूट जाएँ मेरी आँखों से सारे रिश्ते,
जिसको भी हो ज़रुरत मेरी नींदें उधार दे दो ।
ना पुकारे अब, किसी दीवार-ओ-दर से कोई,
मेरे ही घर में मुझको क़ैद-ए-दर-ओ-बाम दे दो ।
बिछड़ा जो हमसफ़र, बे-ख़्वाहिश हो गए हम भी,
उम्मीदों को चाहे ना-उम्मीदी का मोड़ दे दो ।
ना रहा वो जो मेरा, क्यों कर मैं रहूँ किसी का,
महफिलें उसको हों सलामत, मुझे कुंज-ए-लहद दे दो ।

कोह-ए-गिराँ ( पर्वत )
शजरों ( पेड़ों )
दर-ओ-दीवार ( दीवारों और दरवाजों )
क़ैद-ए-दर-ओ-बाम ( दरवाजे और छत का कारावास )
कुंज-ए-लहद ( कब्र का कोना )

©Sameer Kaul 'Sagar' #Apocalypse