“ज़िंदगी" फिसलती जाती रेत सी, मैं वहीं का वहीं किसी सैराब सा। ज़िंदगी महकी हुई सी, खिल रहा हूँ मैं भी अब गुलाब सा। . ©अबोध_मन//फरीदा #अबोध_मन #अबोध_poetry