"माँ" टूटता तारा देखा था बचपन में माँ की आँखों से, था वह चमकता एकदम से टिमटिमाता, चंद लम्हों के लिए ताकता था में उसे, और पल भर में ग़ायब हो जाता था वो। अपने पेट में नव महीने कितनी तकलीफ के साथ, एक माँ अपने बच्चे का ख्याल रखती है, जन्म के बाद अपने दूध से पालती है उसे, अपने मुह से खाने का निवाला छीन कर बच्चों को पहले खिलाती है, पूरी पूरी रात जागकर लोरी गाकर बच्चों को सुलाती है। हम चाहे कितने भी बड़े हो जाए, एक माँ के लिए तो सिर्फ हम बच्चे ही रहते है, स्कूल की परीक्षा हो,या नौकरी का पहला दिन, हमेशा शक्कर खिलाकर भेजती है माँ, पापा की डांट का डर दिखाकर, फिर खुद ही बचाती है पापा की डांट से, जब बाहर निकलते थे तब हमेशा टोकटी वो माँ, रात को जब देरी से आते हैं तब डांटती वो माँ, ममता की मूर्त, ईश्वर की निशानी, भोली भाली सारे जग से निराली मेरी माँ। बचपन में माँ गोदी में बिठा कर दिखाती थी टूटता तारा, और कहती थी इसे देखकर आँखे बंद करके, कोई भी मन्नत मागो तो इसे ईश्वर जरूर पूरा करता है, तभी हम छोटे थे, दुनियादारी का भान न था, अगर होता तो आँख बंद करके माँ की लंबी उम्र ही मांग लेते हम। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-1 #collabwithकोराकाग़ज़ #गणतंत्रदिवस2022 #गणतंत्रभारत #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #kknitesh86