तपती दोपहर में भी तब गर्मी कहां हम बच्चों का झुंड और कड़कती दोपहर घरवालों में भी तब नर्मी कहां चुपके से खुलते थे घरों के दरबाजे और होते थे मुट्ठी में कुछ चावल के दाने थोड़े आलू , एक चाकू कुछ लकड़ी के टुकड़े और कुछ कागज़ के पन्ने छत का एक कोना और प्लास्टिक का खिलौना हम बच्चों का झुंड सबकी मुट्ठी में था कुछ न कुछ जलते थे फिर चूल्हे , पकते थे चावल कुछ कच्चे और कुछ पक्के से लेकिन जैसे थे , सब अच्छे थे क्योंकि वो पल कहां फिर से जब हम बच्चे थे। ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या #जबहमबच्चेथे #यकदीदी #यकबाबा #फिरकहां #मिलजाएवक़्त