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पल ये पलछिन ठहरे भला कब? बहता ही जाए, दो पल रोक

पल ये पलछिन
ठहरे भला  कब?
 बहता ही जाए,
दो पल
रोक लेने की ख्वाहिश
 दम तोड़ जाती है
अक्सर!
....
कुछ एक शब्द,
खाली–खाली से; 
अर्थ रहित
कोई उन्हें
भावों से जोड़ जाए,
कविता में ढल जाते हैं
अक्सर !
...

©अबोध_मन//फरीदा
  #अबोध_मन  #अबोध_poetry 
#फ़क़तफरीदा 

पल ये पलछिन
ठहरे भला  कब?
 बहता ही जाए,
दो पल
रोक लेने की ख्वाहिश

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