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वो समर था मेरे अन्दर और बाहर के बीच, मेरी ही उलझनो

वो समर था मेरे अन्दर और बाहर के बीच,
मेरी ही उलझनों और सुलझनों के भी बीच,
दिल व दिमाग के विचारों को भी टटोलता,
मेरी मानसिकता को पूरी तरह से झंझोड़ता,
बार बार कभी गलत तो कभी सही कहता,
ज़िंदगी दोराहे पर खड़ी,नहीं पता क्या करता।

कहा जाऊँ किधर जाऊँ,कहाँ है मंज़िल मेरी,
नहीं मालूम था, कहाँ का पता पहचान मेरी,
बस इतना पता था कि जाना है दूर बहुत दूर,
रास्ता,फासला,मंज़िल नही पता,था मजबूर,
भाग दौड़ कर रहा था,खातिर आशाओं की,
तलाश जारी ही थी बस यों ही ज़िंदगी की। #समर 
#yqbaba 
#yqdidi 
#yqquotes 
#yqhindi 
#yqpoetry 
#yqchallenge
वो समर था मेरे अन्दर और बाहर के बीच,
मेरी ही उलझनों और सुलझनों के भी बीच,
दिल व दिमाग के विचारों को भी टटोलता,
मेरी मानसिकता को पूरी तरह से झंझोड़ता,
बार बार कभी गलत तो कभी सही कहता,
ज़िंदगी दोराहे पर खड़ी,नहीं पता क्या करता।

कहा जाऊँ किधर जाऊँ,कहाँ है मंज़िल मेरी,
नहीं मालूम था, कहाँ का पता पहचान मेरी,
बस इतना पता था कि जाना है दूर बहुत दूर,
रास्ता,फासला,मंज़िल नही पता,था मजबूर,
भाग दौड़ कर रहा था,खातिर आशाओं की,
तलाश जारी ही थी बस यों ही ज़िंदगी की। #समर 
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