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उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद, उनके रु

उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद,
उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद।

साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा
अपने ही इश्क़ के अफसाने  दोहराता होगा चांद।

बैरी बन; आवारा  बादलों की ओट में छिप करके,
नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।

शब-ए-दैजूर में जब उनके मिलन की आस न जगी,
इश्क़ करने वालों की आँखों में मुस्काता होगा चाँद।

बचपन में मामा बन वो था साथ–साथ अपने चला,
उस दहलीज़ के पार; कई रिश्ते निभाता होगा चाँद।

सुना है ‘मदीहा’ सा ही वो भी घटता बढ़ता रहता है,
कि बिछड़ना अपनो का यूँ भूल न पाता होगा चाँद।

अबोध_मन//‘फरीदा’

©अवरुद्ध मन उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद,
उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद।

साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा
अपने ही इश्क़ के अफसाने  दोहराता होगा चांद।

बैरी बन; आवारा  बादलों की ओट में छिप करके,
नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।
उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद,
उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद।

साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा
अपने ही इश्क़ के अफसाने  दोहराता होगा चांद।

बैरी बन; आवारा  बादलों की ओट में छिप करके,
नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।

शब-ए-दैजूर में जब उनके मिलन की आस न जगी,
इश्क़ करने वालों की आँखों में मुस्काता होगा चाँद।

बचपन में मामा बन वो था साथ–साथ अपने चला,
उस दहलीज़ के पार; कई रिश्ते निभाता होगा चाँद।

सुना है ‘मदीहा’ सा ही वो भी घटता बढ़ता रहता है,
कि बिछड़ना अपनो का यूँ भूल न पाता होगा चाँद।

अबोध_मन//‘फरीदा’

©अवरुद्ध मन उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद,
उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद।

साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा
अपने ही इश्क़ के अफसाने  दोहराता होगा चांद।

बैरी बन; आवारा  बादलों की ओट में छिप करके,
नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।

उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद, उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद। साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा अपने ही इश्क़ के अफसाने दोहराता होगा चांद। बैरी बन; आवारा बादलों की ओट में छिप करके, नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद। #शायरी #चांद_इश्क #अबोध_मन #गुस्ताख़फरीदा #अबोध_poetry #अबोध_love #अबोध_ग़ज़ल