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एक इधर मैं हूँ कि घर वालों से नाराजगी है, इक उधर त

एक इधर मैं हूँ कि घर वालों से नाराजगी है,
इक उधर तू है कि
गैरों का कहा मानता है।
मैं तुझे अपना समझ कर ही तो कुछ कहता हूं,
यार तू भी मेरी बातों का बुरा मानता है।।

-तहज़ीब हाफ़ी

©साहित्य संजीवनी
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