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श्रद्धा (दोहे) हिस्सों में अब बट रहीं, कितनी श्रृ

श्रद्धा (दोहे)

हिस्सों में अब बट रहीं, कितनी श्रृद्धा आज।
आफताब घेरे इन्हें, बन कर के वो बाज।।

घटनाओं का सिलसिला, बढ़ता है दिन रात।
कहती हैं श्रद्धा सभी, समझो अब जज्बात।।

धोखा दूँ माँ बाप को, श्रद्धा करे न पाप।
आफताब जैसे मिलें, तब होता संताप।।

हो श्रद्धा मन में बहुत, खुश होते भगवान।
संकट करते दूर हैं, हों पूरे अरमान।।

श्रद्धा जिसमें भी रहे, हो उसका उद्धार।
पाप कर्म से दूर हो, बना रहे उद्गार।।

श्रद्धा से कोमल बने, मन के अपने भाव।
दूजों की पीड़ा दिखे, उभरे उर के घाव।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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श्रद्धा (दोहे)

हिस्सों में अब बट रहीं, कितनी श्रृद्धा आज।
आफताब घेरे इन्हें, बन कर के वो बाज।।

घटनाओं का सिलसिला, बढ़ता है दिन रात।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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