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खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है कभी कभी अश्क बनकर बह

खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है
कभी कभी अश्क बनकर बह जाती है
दर्द की तासीर खोखला कर देती है "सूर्य"
खड़ी इमारत भी खामोशी से ढह जाती है

©R K Mishra " सूर्य "
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