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कोहरा (दोहे) घना कोहरा छा गया, दिखे न कुछ भी पार।

कोहरा (दोहे)

घना कोहरा छा गया, दिखे न कुछ भी पार।
ठंडी तब लगती बहुत, पड़े ब्यार की मार।।

फसल हुई बर्बाद है, करते कृषक विलाप।
संकट ऐसा है अभी, जैसे हो अभिशाप।।

मार कोहरे की लगे, हालत होती चूर।
आग जला कर ही तभी, ठंड करें सब दूर।।

वाहन भी हैं भीगते, खड़े सभी जब द्वार।
इंधन सब बाधित हुए, हो कैसे उपचार।।

व्यथित कोहरा ही करे, कैसे मिले निदान।
गरम वस्त्र से ढाँकते, खुद को अब इंसान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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कोहरा (दोहे)

घना कोहरा छा गया, दिखे न कुछ भी पार।
ठंडी तब लगती बहुत, पड़े ब्यार की मार।।

फसल हुई बर्बाद है, करते कृषक विलाप।
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Devesh Dixit

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