अकेले रहना अच्छा तो लगता है, लेकिन कभी-कभी सताती है तनहाइयां, यूँ तो सब कुछ हासिल कर लिया मैंने फिर भी, कभी-कभी लगता है ज़िन्दगी तू मुकम्मल नहीं। ना जान पा रहा हूंँ मैं, ना ही पहचान पा रहा हूंँ मैं, के किस चीज की कमी है, मेरी इस आधी अधूरी सी ज़िन्दगी के मंज़र में। आधी अधूरी सी ज़िन्दगी को, बहुत ही मुकम्मल करने की कोशिश की मैंने, लेकिन फिर भी ऐसी कोई वज़ह या शख्सियत, ना मिली मुझे के जो इसे मुकम्मल बना सके। ढूँढ रहा हूंँ आज भी ऐसी शख्सियत, के जो मेरे दिल के जज़्बात को समझें, और मुझे अपनी ज़िन्दगी की साँसे बनाकर, यह जो बाकी ज़िन्दगी है उसे मुकम्मल करें। -Nitesh Prajapati (Niharsh) ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1105 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।