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अनंत (दोहे) लीला अनंत आपकी, ओ गिरिधर गोपाल। जकड़े

अनंत (दोहे)

लीला अनंत आपकी, ओ गिरिधर गोपाल।
जकड़े जिसमें हैं सभी, वो है माया जाल।।

जिसे रचा है आपने, माया वही अनंत।
कैसे अब दीदार हों, ओ मेरे भगवंत।।

महिमा अनंत आपकी, कहते सभी सुजान।
एक न पत्ता हिल सके, जाने सकल जहान।।

भजे आपको जो कभी, उसका बेडा पार।
सुख साधन से हो धनी, ऐ मेरे भरतार।।

सत्य बचाने के लिए, रूप किया विस्तार।
चलता अनंत काल से, जीवन का ये सार।।

कलियुग ने घेरा अभी, है उसका ही जोर।
हुए अनंत प्रहार हैं, दर्द सहें अब घोर।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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अनंत (दोहे)

लीला अनंत आपकी, ओ गिरिधर गोपाल।
जकड़े जिसमें हैं सभी, वो है माया जाल।।

जिसे रचा है आपने, माया वही अनंत।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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