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काश! उतना आसान हो पाता तुम्हे भुला पाना

काश!
    उतना आसान हो पाता
    तुम्हे भुला पाना
    जितनी आसानी से तुम्हे लगने लगा 
    की हम तुम्हे भूल गए

काश!
      बता पाती मैं तुम्हे 
      की इस बार तुम गलत निकले
      की इस बार गलत तुम समझ बैठे 
      कि भुला चुकी हूं मैं तुम्हे

मगर..
     तुम्हे ये अब बताऊं भी
     किस हक से मैं
     कि अब भी तुम्हारी ही हूं
     ना तुम्हे ज़रा भी भुला पाई हूं मैं

बस समय के साथ इतनी 
मज़बूत हो चुकी हूं कि
तुम्हारे सामने अपने आसुओं को
गिरने से थाम लेती हूं मैं
और एक नकली सी मुस्कान के परदे में
तुमसे बिछड़ने का दुख छुपा लेती हूं मैं

हैरानी तो इस बात की है मुझे
की तुम जो कहते थे की 
”तुम्हे तुमसे भी ज्यादा जानता हूं मैं“
तुम ही इस मुस्कान को 
पहचान नहीं पाए मेरी

काश! 
      तुम सच में जान पाते मुझे
     काश तुम बस एक बार पहचान जाते मुझे....
काश!
      कि कह देते एक बार भी तुम
     की क्यों ये मुस्कुराने का दिखावा करती हो तुम?
     काश कि कह देते एक बार भी तुम
     की आखिर कब तक इन आंसुओ को 
     यूं छुपाती रहोगी मुझसे ही तुम...

©Pallavi Mamgain
  
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