अब तो क़ायदों के तर्कश में फायदों के तीर रखते हैं सखी लोग रीति नीति अपने हिसाब से बदलते है सलीके की सोच भी नहीं रखते वो पारखी बनते हैं खुद के मसले हल होते नहीं दूसरों के सारथी बनते हैं खोट खुद में एक नहीं औरों के गठड़ी बांध दिखाते है मुखौटे उधेड़ कर हालात सच्चाई बाहर ले ही आते है बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla तर्कश