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ग़ज़ल 122 122 122 122 हमें आपकी ही ये चाहत हु

ग़ज़ल 122 122 122 122

हमें   आपकी  ही  ये  चाहत  हुई हैं
कसम से  सनम से  मुहब्बत  हुई हैं

तमन्ना  हमारी हैं   रहमत  खुदा की
खुदा  की  यहाँ  पर  इनायत हुई हैं

न मुझको ख़बर थी न उनको पता था
दिलो  की  दिलो से तिज़ारत हुई हैं

मुहब्बत जो कर ली जमाना खफ़ा था
जहाँ  से  वफ़ा  की  बगाबत  हुई हैं

फरेबी  हुये  जब से  रहबर जहाँ के
ये बदनाम  तब से  शराफ़त  हुई हैं

हमें मिल गया ये सुख़न का यहाँ फ़न
तभी   से   हमारी  मुरव्वत   हुई  हैं

ख़ुदा की  इवादत  तो तस्बीह से की
ग़ज़ल  हुस्न  की अब  इवादत  हुई  हैं

धरम शेर  जब  से  हॉ कहने लगे है
रकीबों  को  तब से अदावत  हुई हैं

कवि धरम सिंहः

©kavi Dharmsingh Malviya #गजल_सृजन
ग़ज़ल 122 122 122 122

हमें   आपकी  ही  ये  चाहत  हुई हैं
कसम से  सनम से  मुहब्बत  हुई हैं

तमन्ना  हमारी हैं   रहमत  खुदा की
खुदा  की  यहाँ  पर  इनायत हुई हैं

न मुझको ख़बर थी न उनको पता था
दिलो  की  दिलो से तिज़ारत हुई हैं

मुहब्बत जो कर ली जमाना खफ़ा था
जहाँ  से  वफ़ा  की  बगाबत  हुई हैं

फरेबी  हुये  जब से  रहबर जहाँ के
ये बदनाम  तब से  शराफ़त  हुई हैं

हमें मिल गया ये सुख़न का यहाँ फ़न
तभी   से   हमारी  मुरव्वत   हुई  हैं

ख़ुदा की  इवादत  तो तस्बीह से की
ग़ज़ल  हुस्न  की अब  इवादत  हुई  हैं

धरम शेर  जब  से  हॉ कहने लगे है
रकीबों  को  तब से अदावत  हुई हैं

कवि धरम सिंहः

©kavi Dharmsingh Malviya #गजल_सृजन