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सोच रही हूं कि तुम पर "एक किताब" लिख दूं, हर पंक्त

सोच रही हूं कि तुम पर "एक किताब" लिख दूं,
हर पंक्ति में तुम्हें "लाजवाब" लिख दूं,
मोतियों सा सजा के शब्दों में,
तुम्हारा ज़िक्र "बेहिसाब" लिख दूं,
इस किताब को इत्मीनान से पढ़ना,
मेरे एक - एक अल्फाज़ को अच्छे से समझना,
ये किताब भी मेरी ही तरह है,
अल्फाजों से भरी हुई है, लेकिन है ख़ामोश,
समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है इस किताब को,
बस पढ़ते वक्त संभाले रखना होश,
क्योंकि, एक भी शब्द नज़रों से ओझल हुआ,
तो फिर से शुरुआत करनी पड़ेगी,
आखिरी पन्ने तक पहुंच भी गए, 
तो भी पहले पन्ने से किताब पढ़नी पढ़ेगी,
इस किताब को तुम जब भी खोलो,
तुम्हें "मेरा चेहरा" दिखाई दे,
हर एक पन्ना पलट कर जब तुम मुस्कुराओगे,
तब तुम्हें "मेरी आवाज़" सुनाई दे..!!

©ख्वाहिश _writes
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