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अंधेरी रात की ख़ामोशी ********************** शअंध

अंधेरी रात की ख़ामोशी
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शअंधेरी रात की खामोशी ,
तड़पते हुए दिल की मदहोशी,और
बहती  हुई  मंद - मंद  ठंढ़ी  हवाएं,
मन को झकझोर रही है।
  हरे दूभ के  घांसों  पर बैठा , मै अकेला और, 
 इंतजार       में      विभोर     गुमनाम    सांसें,
अधुरे   सपनो    की   बाट   जोह   रही   है।।
अंधेरी   रात   की  खामोशी , टूटे   दर्पण   में,
 मुझे    जगा   कर   चुपचाप    सो    रही    है।
आसमान से  टपकती  शबनम की शीतलता,
और   घांसो   पर   बैठी   शबनम   की    बुंदे,
मेरे मुरझाए हुए मन को मोह रही है।।
अंधेरी       रात         की       खामोशी,
अपने हीं  आंखों  में मुझे जोह रही है।।
पर अफसोस,
मेरे तन  की  आत्मा मेरे अंतर  मन को,
झकझोर रही है।
इंतजार  में विभोर  गुमनाम  सांसें,
अधुरे सपनों की बाट जोह रही है।।
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प्रमोद मालाकार कि पेशकश
10.12.23

©pramod malakar
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