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तुम सफर से थक क्यूँ गए हो उजले सपनों में बिखर क्य

तुम सफर से थक क्यूँ गए हो 
उजले सपनों में बिखर क्यूँ गए हो
रात का साया इतना बेदर्द था क्या?
तुम सवेरे से डर क्यूँ गए हो ?
चलो बिखेरे देते है दर्द के प्यालो को 
बाँटने किसी के एहसास को 
कोई हमदर्द भी मिलेगा
 कोई हमसाया बनने को
तुम भूल समझ कर बैठ गए
ये दर्द अपनी मंजिल तक ले जाएगा
खुशी के भाव से भरकर
 अपने करार तक ले जाएगा 
ना करना किसी से किसी का मेल
ये मेल अपने दीदार तक लेके जाएगा

पिया

©कवि पिया
  संजय सिंह भदौरिया

संजय सिंह भदौरिया #शायरी

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