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न सुनने की क्षमता, न बोलने का दम,। अब चलने में भी

न सुनने की क्षमता, न बोलने का दम,।
अब चलने में भी लड़खड़ाते हैं कदम,।
ये कौन सी हवा चली है, बेदर्द हो गए हैं सब,
बात बात पर ज़ख्मों भरी बातें सुन रहे हैं,
जीवन जैसे ढों रहे हैं हम,।
जिनके लिए हमने एक एक पल एक कर दिया था,
धूप छांव क्या है, सोचा न था,
आज वही हमें दरकिनार कर रहे हैं,
हर किसी से बेजार हो गए हैं हम ,...।
मोहताज भरी जिन्दगी जी रहे हैं,
साथ अब कोई नहीं, कौन देखे ये सितम,।
न सुनने की क्षमता, न बोलने का दम..।

©Bhavana kmishra
  #लड़खड़ाते कदम
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