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रात के अंधेरे में जब भी खामोश बैठते हैं, ये रात हम

रात के अंधेरे में जब भी खामोश बैठते हैं,
ये रात हमसे कुछ कह जाती है।

कहती है हौसलों को ज़िंदा रख तू,
ज़िन्दगी में ग़मों से लड़ना अभी बाकी है।

खुशियों की रौशनी उसी को मिलती है,
जो ग़म के अंधेरों का भी आदी है।
ये अंधेरा तो रौशनी का हमदम है, साथी है।

हवा के झोंके जैसी हैं खुशियां 
आती हैं, चली जाती हैं।
खुश रहने की ज़िद है अगर 
तो खुशी का एक लम्हा हीं काफी है।
‌
ज़िन्दगी में जो ग़म, गुज़र गए,
उनके निशां अभी बाकी है।
जैसे रात के बाद अंधेरों की पहचान,
गुफाओं में रह जाती है।

यूं हीं हौसलों को, ज़िंदा रखना,
ज़िन्दगी में ग़मों से लड़ना अभी बाकी है।

©Jupiter and it's moon....(प्रतिमा तिवारी)
  धूप-छांव!
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