एक रात का मुसाफ़िर, तन्हा चला हमेंशा अंधेरे में, नई सुबह की खोज में, नये मंज़र की तलाश में। एक रात का मुसाफ़िर, कुछ यूँ भटका अपनी राहों से, के इन अमावस की रातों में, उसे कहीं अपनी पूनम का चाँद ना मिला। इस तन्हाइयां भरी रातों में होते हैं तो, चंद लम्हें ही लेकिन एक दिल के मरीज को, अपने दर्द के साथ यही लम्हें काटना, लगता है जैसे सदियों जैसा। ये नादान परिंदा कभी उड़ता था, आज़ादी से इन खुले आसमान में, लेकिन किसी ने उसकी खुशी के पंख यूँ काटे के, इस मुसाफ़िर को फिर कभी खुशियों का आलम ना मिला। -Nitesh Prajapati ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1082 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।