मोहब्बतें जगज़ाहिर हो रहीं हैं, तोबा-तोबा कयामतें हो रहीं हैं । चार दिन की चांदनी, और जन, सरेआम लुटियां डुबो रहीं हैं । कट गया शज़र भी उम्मीद का, सूटकेसों में चिड़ियां सो रहीं हैं । हुआ जन्म सृष्टि का, मां जबसे, लहू का ज़र्रा-ज़र्रा बो रहीं हैं । ये कैसी विडंबना है देखो जरा, प्रेम पाश में अस्मतें खो रहीं हैं । चढ़ गया लेप कांच का जबसे दीमकें घर बनाने को रो रहीं हैं । धर्म के नाम पर सरकारें भी, बहती गंगा में हाथ धो रहीं है । मुफ़लिसी की ये अदा भी देखो, चीटियां भी खिलौने संजो रहीं हैं । ©Darshan Raj #a #gazal #nazm #bazm_e_nazm #bazm_e_urdu #Darshan_Raj #Shayar #shayri #rekhta #Nojoto