जब हम बचपने में होते हैं तो हम अपनी पसंद नापसंद बिना सोचे समझे बोल देते, कुछ भी मांग लेते है, कुछ भी ख्वाहिशें रखते हैं क्योंकि हमें ये यकीन होता है के हमे ये सब कुछ दिलाने वाले, इन्हे पूरा करने वाले हमारे माता पिता हैं जिन्होंने हमें जन्म दिया है, बड़े नजों से पाला है। बड़े होते होते हमे घर में हालातों और दिक्कतों को देखकर या तो ख्वाहिशों को दबा देते है या ज़िद्द करने लगते हैं मगर हमारे माता पिता फिर भी ये कोशिश अवश्य करते हैं के हमे कोई कमी ना हो। जितना हो सके ये भी ये उनकी कोशिश होती है कि वो हमारी हर ज़रूरत पूरी करें। शायद माता पिता में हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटी मोटी नोक झोंक भी हो जाती होगी जिससे हम अक्सर अनभिज्ञ होते है पर हमारी ख्वाहिश फिर भी पूरी हो ही जाती है।
मगर जब कुछ बच्चे बड़े हो जाते हैं, अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं तो वो ज़िम्मेदरियों से भागने की कोशिश करते हैं। उनके माता पिता मेहनत की इज्जत करने के बजाए, उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करते। वो बहाने बनाने बना कर ज़िम्मेदारियों से पीछा छुड़ाने लगते हैं। कुछ तो अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ने के लिए तर्क वितर्क करते हैं। ऐसी औलाद आज भी कहीं ना कहीं, किसी ना किसी घर के माता पिता के जीवन का अफसोस का कारण बने हुए हैं। हालाकि इतना मैं विश्वास से की सकता हूं के वैसे बच्चे अक्सर मां या पिता के लाडले या लडलिया होंगे।। #जिम्मेदारियाँ#बोझनहीं#बढ़ते#लोगों_का_काम_है_कहना#yqbaba#yqdidi#yqhindi#penofasoul