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क्रूर (दोहे) किसी बात का हल नहीं, हो स्वभाव ये क्

क्रूर (दोहे)

किसी बात का हल नहीं, हो स्वभाव ये क्रूर।
अपने ही सब हों खफा, बाकी भी सब दूर।।

देख क्रूर को मन बड़ा, होता है बैचेन।
हर क्षण उसका खौफ हो, हो चाहे दिन-रैन।।

कहते हैं सज्जन सभी, दुख भोगे है क्रूर।
कुछ पल का आनंद है, मिटता वही जरूर।।

बने क्रूर वो ही सुनो, जिसको है अभिमान।
अन्धकार में है वही, जिसे नहीं है ज्ञान।।

मत पालो ये क्रूरता, होते सब हैरान।
जीवन को ही कोसते, कहते सभी सुजान।।

जो बनते हैं क्रूर वो, उन्हें कहाँ सम्मान।
हर क्षण ही सब कोसते, पाता वह अपमान।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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क्रूर (दोहे)

किसी बात का हल नहीं, हो स्वभाव ये क्रूर।
अपने ही सब हों खफा, बाकी भी सब दूर।।

देख क्रूर को मन बड़ा, होता है बैचेन।
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Devesh Dixit

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