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हमें भी हर हाल अब जीना आ गया, उधड़े हुए ज़ख्मों को,स

हमें भी हर हाल अब जीना आ गया,
उधड़े हुए ज़ख्मों को,सीना आ गया,

इतना शिद्दत से लड़े मुश्किलों से हम,
कि मुश्किलों को भी पसीना आ गया,

बिखरी सी ज़िन्दगी ने जब, आईना देखा,
बेतरतीब  ज़िन्दगी को ,करीना आ गया,

ख़ुशियों के साथ, इतने  ज़ख़्म  सहेजे हैं,
कि अब दर्द को भी हँस के पीना आ गया,

कितने ही संघर्षो के, हमने पैबंद लगाए हैं,
क्यूँ दर्द फ़िर  ज़िन्दगी में,  झीना आ गया,

उम्र गुज़ार दी है कभी हँस के ,कभी रोकर,
उम्मीद की डोर थामे, ख़ुशनुमा महीना आ गया।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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