आपकी लिखी हर नज़्म अपने आप में पूरी कहानी है, आपका लिखने के लिए प्रेम देखकर हमें भी लिखने से और प्रेम हो जाता है!
प्रवीण दादा, आपकी बवाल गिरी सच में बहुत बवाल करती है और आशा करता हूँ आप यूँ ही बवाल गिरी मचाते रहेंगे!
एक गुज़ारिश है दादा, दिन में कम से कम एक नगमा हम जैसे चाहने वालों के लिए जरूर लिख दिया करो..!
पत्र का अंत नहीं होता मेरा ऐसा मानना है क्योंकि अंत हुआ तो दुबारा ना लिखा जाएगा,.. इसको थोड़ा यहाँ विराम दे रहा हूँ ताकि आपके लिए दुबारा लिखूं, तिबारा लिखूँ..!
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