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तूने देखे हैं वो खत ए नामा - बर, जो पहुँच कर पते पर जवाब लाते हैं.. Some letters don't find addresses, some letters are undelivered. #cinemagraph #kumaarsthought #kumaarletter #खत
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प्रिय ग़म तुमसे तुम्हारी खैरियत क्या पूछे सब तुमसे प्यार करने से कतराते तुम्हें ख़त लिखूँ, ख़त में तुम्हारा ज़िक्र हो तुम खटकते सब को फिर क्यों फ़िक्र हो तुम और तुम्हारी सूरत कोई नहीं देखना चाहता, पर मुझे तुम फिर भी अजीज हो, जानते हो क्यों? मैं बताता हूँ तुम्हें तुम मुझे बुरे क्यों नहीं लगते, क्योंकि मैंने तुम्हें बहुत करीब से मेहसूस किया है या यूँ कहो कि तुम्हें मैंने अपने में बहुत बार जिया है, और जब आप किसी को अपने अंत: मन से जीते हो, वो कितना भी दुखदायी हो, आपका अपना ही रहता है..! मैं अक्सर यह सोचता हूँ कि तुम कितने अकेले हो कि पूरे जहां में तुम्हें कोई अपने पास नहीं रखना चाहता प्रिय ग़म तुमसे तुम्हारी खैरियत क्या पूछे सब तुमसे प्यार करने से कतराते तुम्हें ख़त लिखूँ, ख़त में तुम्हारा ज़िक्र हो तुम खटकते सब को फिर क्यों फ़िक्र हो
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सुकून को चिट्ठी लिखी, एक रोज़ दरवाज़े को ख़त लिखा सजीव हो चाहे निर्जीव हो, मैंने सब को एक मत लिखा साड़ी भी प्रफुल्लित हुई, अलमारी भी थी पाकर ख़ुश चूल्हे को रोटी ख़ुशी मिली, प्रेम को अपनी हिम्मत लिखा कलम को लिखा एहसासों की तासीर में डूबी रोशनाई से दिल को मैंने क़ातिल कहा, और प्यारी शिकस्त लिखा पहिये को लिखकर सीख दी थोड़ी, थोड़ा सा समझाया बगीचे में रौनक लिखी, और संगीत को खूबसूरत लिखा तकिये का मैंने साथ लिखा और लिखा हवा का पैगाम आईने को अक्स दिखाया, 'कुमार' एक पत्र फुर्सत लिखा To be continued... #kumaarsthought #kumaarpoem #yqletter #Kumaarletter #letterseriesbyjai #सार
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प्रिय पहिये 'दुनिया का बोझ तुम उठाते फिर भी ज़रा ना तुम घबराते' तुम में ना जाने कहाँ से इतनी शक्ति आती है कि बिना किसी शिकायत, शर्त के इतना सहन करते हो, और उसके बदले में तुम क्या चाहते हो कोई तुम्हें गुस्से में लात ना मारे, पर तुम कुछ नहीं कह पाते उनको..! आज मैं तुम्हारे साथ जिए दो संस्मरण तुम्हें लिख रहा हूँ, तुम बताना तुम्हें कौनसा अक्षर दर अक्षर याद है..! पहला संस्मरण : दिनाँक 22 दिसंबर 2008 समय सुबह के 9:20-25 के आसपास का जब तुमने ख़ुद पर पूरा दोष लेकर उस मासूम सी बच्ची को बचाया था मेरी बाइक के नीचे आने से, सर्दी की गुलाबी सुबह और गुलाबी नगरी की ठण्ड.. ऊऊऊऊऊ, गलती शायद मेरी थी कि उस ओर ध्यान ना गया पर तुमने फिसलते फिसलते उस बच्ची की रक्षा की, उसके लिए में तुम्हारा आभारी हूं, ऋणी हूँ..! प्रिय पहिये 'दुनिया का बोझ तुम उठाते फिर भी ज़रा ना तुम घबराते' तुम में ना जाने कहाँ से इतनी शक्ति आती है कि बिना किसी शिकायत, शर्त के इतना सहन करते हो, और उसके बदले में तुम क्या चाहते हो कोई तुम्हें गुस्से में लात ना मारे, पर तुम कुछ नहीं कह पाते उनको..! आज मैं तुम्हारे साथ जिए दो संस्मरण तुम्हें लिख रहा हूँ, तुम बताना तुम्हें कौनसा अक्षर दर अक्षर याद है..!
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प्रिय सुकून तुम्हारी मौजूदगी से सब मंगलमय है, आनंदमय है..! तुम्हारा आज पत्र मिला, सच कहूँ तो मुझे उम्मीद थी कि तुम्हारा जवाब आएगा पर यह भी हकीक़त है कि इसका यक़ीन नहीं था कि इतनी जल्दी आएगा..! तुम्हारी हैरानी जायज है, मैं वादा करता हूँ कि आगे से तुम्हें शिकायत नहीं होगी! तुम्हारी बात सुनकर मन प्रफुल्लित हुआ, तुम्हारी बात आगे बढ़ाते हुए मैं तुमसे कहना चाहूँगा कि जब कुमार की कलम तुम्हारी यादों की रोशनाई से तुम्हें पाती लिख रही थी, तब तुम ही रक्त बनकर मुझे मार्ग दिखा रहे थे..। मैं तुम्हारी यह बात भी मानता हूँ कि तुम्हें समझना थोड़ा कठिन है पर तुम जानते हो जब तक दिमाग के सारे घोड़े जीवन की सड़क पर ना दौड़ाएं, लुत्फ़ नहीं आता उसे पाने का..! प्रिय सुकून तुम्हारी मौजूदगी से सब मंगलमय है, आनंदमय है..! तुम्हारा आज पत्र मिला, सच कहूँ तो मुझे उम्मीद थी कि तुम्हारा जवाब आएगा पर यह भी हकीक़त है कि इसका यक़ीन नहीं था कि इतनी जल्दी आएगा..! तुम्हारी हैरानी जायज है, मैं वादा करता हूँ कि आगे से तुम्हें शिकायत नहीं होगी!
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प्रिय मुकुल, मैं जानता हूँ पत्र लिखना जितना मुझे पसंद है उतना तुम्हें भी और हाँ मैं तुम्हें हक़ से 'तुम' कह सकता हूँ..। पत्र में तुमसे हुई कुछ गुफ़्तगू लिख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ तुम वर्तमान में रहकर, भूत को जियो गे और भविष्य को सुन्दर करोगे..। पहला संस्मरण :- दिन, दिनाँक तो याद नहीं पर जब पहली बार तुमसे मैंने दाऊ सुना था, सच में ख़ुद को बलराम मानने लगा था और यकीन होने लगा था कि बड़ा हूँ.. (मज़ाक नहीं है यह) यहां पर ज्यादतर लेखक, पाठक मुझे भाई, सर या दोस्त ही कहते, दाऊ कभी नहीं सुना, ना ही कभी जिंदगी में अब तक किसी ने सामने से कहा.. यह मेरी लाइफ में सुना शायद सबसे प्यारा संबोधन हैं मेरे लिए क्योंकि इसमे केवल संबोधन नहीं, प्यार है, सम्मान है..। प्रिय मुकुल, मैं जानता हूँ पत्र लिखना जितना मुझे पसंद है उतना तुम्हें भी और हाँ मैं तुम्हें हक़ से 'तुम' कह सकता हूँ..। पत्र में तुमसे हुई कुछ गुफ़्तगू लिख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ तुम वर्तमान में रहकर, भूत को जियो गे और भविष्य को सुन्दर करोगे..। पहला संस्मरण :-
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प्रिय डॉ साहिबा आप और आपकी शालीनता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है मुझे..। आपको बहुत दिन से पत्र लिखकर धन्यवाद कहने की सोच रहा था पर इंतजार में दिन निकलते गए..। आज कलम ने कहा कि आज तो मौका भी है और दस्तूर भी, तो क्यों ना डॉ साहिबा को एक चिट्ठी लिखी जाए और उनसे कुछ संस्मरण साझा किए जाए..। पहला संस्मरण :- मुझे आज वो दिन याद है जब आपसे पहली बार बात हुई थी, दिनांक 7th मई, समय 8:51 रात के, उस समय पूरा भारत जिस समस्या से गुजर रहा था उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है, पर जिस सहजता से आपने मेरी पूरी बात सुनी और सलाह दी, वह मुझे आज भी याद है। प्रिय डॉ साहिबा आप और आपकी शालीनता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है मुझे..। आपको बहुत दिन से पत्र लिखकर धन्यवाद कहने की सोच रहा था पर इंतजार में दिन निकलते गए..। आज कलम ने कहा कि आज तो मौका भी है और दस्तूर भी, तो क्यों ना डॉ साहिबा को एक चिट्ठी लिखी जाए और उनसे कुछ संस्मरण साझा किए जाए..।
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प्रिय दिव्या, ख़त की शुरुआत में अज्ञात जी के एक शेर से करता हूँ, अज्ञात जी कहते हैं कि मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई अपने वतन की मिट्टी बहुत याद आती है, शायद इसीलिए मेरा जुड़ाव ज्यादा रहा तुमसे यहाँ, अपने गुलाबी नगर की बात ही शायद कुछ ऐसी है.. एक ही शहर में रहकर भी कभी ना मिले, पर इस YQ परिवार ने उस कमी को पूरा किया। दिव्या, तुमसे जब से दोस्ती हुई तब से बहुत सी चीज़े मुझे हम दोनों में समान लगी जैसे तुम्हारा और मेरा जयपुर से होना, पेशा अध्यापन, लिखने का शौक, उर्दू सीखने की लालसा.. और भी बहुत कुछ है शायद जो तुम देखो प्रिय दिव्या, ख़त की शुरुआत में अज्ञात जी के एक शेर से करता हूँ, अज्ञात जी कहते हैं कि मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई अपने वतन की मिट्टी बहुत याद आती है, शायद इसीलिए मेरा जुड़ाव ज्यादा रहा तुमसे यहाँ, अपने गुलाबी नगर की बात ही शायद कुछ ऐसी है.. एक ही शहर में रहकर भी कभी ना मिले, पर इस YQ परिवार ने उस कमी को पूरा किया।
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प्रिय मधु जी सादर प्रणाम..! आपको मधु जी लिखना थोड़ा अटपटा लगता है पता नहीं क्यों, पर अंदर से मन नहीं मानता कि आपका नाम लूँ, तो आज से मैं आपको 'उस्ताद जी' ही कहूँगा.. वैसे तो दुनिया कहती हैं कि नाम में क्या रखा है, पर नाम से ही आपकी पहचान होती है यह मेरा मानना है, और आपको देखकर, पढ़कर, मेहसूस करके हमेशा गुरु माता वाली ही फीलिंग्स आई, तो गुरु माता और उस्ताद जी को कुमार का प्रणाम..। आप, जब भी कलम उठाते हैं बस फिर कलम चलती नहीं, और एक छोर से होकर जब वह मुकाम तक जाती है तब ऐसा नगमा बन चुका होता है जिसे लिख पाना हर किसी के बस की बात नहीं..। आपके हर लेख में आपका अनुभव साफ साफ दिखाई देता है और जब आप अपने लेखन से कुछ सिखाते हैं, क्या कहें कितना आंनद आता है..। आप यूँही यहाँ ता-उम्र लिखते रहे और हम आपके शागिर्द बनकर सीखते रहे..। आपकी कलम का मुरीद जय #kumaarsthought #yqletter #yqlewrimo #Kumaarletter #kumaarjuneletter #kumaardedication आपके लिए दिल से ढ़ेर सारा प्यार उस्ताद जी, आपकी लेखनी का कुछ असर है हम पर.. ।आपकी सोहबत और आशीष को हम पर बनाए रखना..। Dedicating a #testimonial to Madhumayi
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प्रिय साड़ी तुम अपने नाम, मेरी कलम से लिखे पत्र को देखकर अचंभित ना होना कि मैंने तुम्हें कैसे चुना पत्र लिखने के लिए.. तुम्हारा ऐसा सोचना कुछ हद तक ठीक है पर मुझे बताते हुए खुशी भी है कि तुम नारी पर सजने वाला सबसे प्यारा परिधान हो..। तुम जब जब किसी स्त्री के शरीर पर सुशोभित होती हो, नारी की सुन्दरता में चार से भी ज्यादा चाँद लग जाते हैं और उस वक़्त वह स्त्री चाहे वह कन्या हो, किसी की अर्धांगिनी, किसी की माँ, बहु, सास, दादी नानी सब को एक अलग ही तरह का सुकून देती हो..। तुम्हें विश्व भर में सम्मान प्राप्त है, 'दैनिक दिनचर्या' हो, या सुहाग के लिए रखा गया 'करवा चौथ' का व्रत, या पहली बार पग फेरे के बाद मायके से ससुराल जाना हो, या किसी अपने की शादी में हर जगह (पूरा पत्र अनुशीर्षक में) प्रिय साड़ी तुम अपने नाम, मेरी कलम से लिखे पत्र को देखकर अचंभित ना होना कि मैंने तुम्हें कैसे चुना पत्र लिखने के लिए.. तुम्हारा ऐसा सोचना कुछ हद तक ठीक है पर मुझे बताते हुए खुशी भी है कि तुम नारी पर सजने वाला सबसे प्यारा परिधान हो..। तुम जब जब किसी स्त्री के शरीर पर सुशोभित होती हो, नारी की सुन्दरता में चार से भी ज्यादा चाँद लग जाते हैं और उस वक़्त वह स्त्री चाहे वह कन्या हो, किसी की अर्धांगिनी, किसी की माँ, बहु, सास, दादी नानी सब को एक अलग ही तरह का सुकून देती हो..। तुम्हें विश्व भर में सम्म