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इंसान जब जिस कैफ़ियत से गुज़रता है, जब जिस मिज़ाज

इंसान जब जिस कैफ़ियत से गुज़रता है,
जब जिस मिज़ाज में होता है, या फ़िर 
अपने आस-पास के माहौल को जिस तरह 
महसूस करता है, 
उसी बदलती कैफ़ियत और माहौल के साथ 
इंसान की सोच और ख़यालात भी बदलते रहते हैं 
और यही सोच और ख़यालात फिर लफ़्ज़ों में 
तब्दील हो कर काग़ज़ पर उतर आते हैं।

लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं होता ना कि 
बदलती सोच और बदलते ख़यालात के साथ 
वो लोग ख़ुद भी बदल जाते हैं या फ़िर 
अपनी फ़ितरत ही बदल लेते हैं।

इंसान चाहे तो सब कुछ बदल सकता है लेकिन 
इंसान की फ़ितरत कभी भी नहीं बदलती, 
न जाने क्यूॅं लोग इस बात को भूल ही जाते हैं।

©Sh@kila Niy@z
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