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उस संगदिल के रुबरू मुस्कुराना भी फ़िज़ूल है, ऐसे ब

उस संगदिल के रुबरू मुस्कुराना भी फ़िज़ूल है,
ऐसे बेदर्द से आशनाई जिगर में चुभोती शूल है।
जो समझ न कभी ज़ज़्बात, एहसाशात तुम्हारे!
उस सख्स को ज़िंदगी में शामिल करना भूल है।।

अर्चना तिवारी तनुजा

©Archana Tiwari Tanuja
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01/03/2023