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तुम्हारे बिन ये घर-आँगन मुझे तो काट खाता है। तुम्ह

तुम्हारे बिन ये घर-आँगन मुझे तो काट खाता है।
तुम्हारे संग गुज़ारा हर लम्हा मुझे याद आता है।
तेरी यादों के मोती अब पिरोती हूँ मैं माला में,
माला का सुमिरन दिल मेरा दिन-रात करता है।

©HINDI SAHITYA SAGAR
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