विषय :- तुझको ही अपना बनाऊँगा। **************************** महफ़ूज़ है तू मेरे अल्फाज़ों में, लफ़्ज़ों में बयाँ कर जाऊँगा। मैं तेरा दीवाना हूँ हमदम, बस तुझको ही अपना बनाऊँगा। मैं अपनी साँसों से हमदम, तेरी साँसों को भी महकाऊँगा। तू दिल में बसती है मेरे, तुझे अपनी धड़कनों में बसाऊँगा। है चाहत कितनी तेरी ख़ातिर, दिल चीर के तुझे दिखाऊँगा। कर ना सकोगी यकीं जितना, उतनी चाहत तुझपे लुटाऊँगा। है अरमाँ कितने इस दिल के, तुझे चुपके से मैं बताऊँगा। फिर छेड़ के तुझको मेरे हमदम, तुझे सीने से भी लगाऊँगा। तू बन जा मेरी नज़्में दिलबर, तुझे रोज मैं गुनगुनाऊँगा। गज़लें बनाकर तुझे अपनी, सारी दुनिया को मैं सुनाऊँगा। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-2 रचना क्रमांक - 2 विषय :- तुझको ही अपना बनाऊँगा। महफ़ूज़ है तू मेरे अल्फाज़ों में, लफ़्ज़ों में बयाँ कर जाऊँगा। मैं तेरा दीवाना हूँ हमदम, बस तुझको ही अपना बनाऊँगा। मैं अपनी साँसों से हमदम, तेरी साँसों को भी महकाऊँगा।