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Kulbhushan Arora

ज़िंदगी... आग का दरिया है,
इससे सबको गुज़रना भी ही,
प्रश्न है की क्या किया जाए,
आओ ज़रा इस बात को
समझें कि आग ना जलाए,
दरअसल,
हम इस।आग को भड़काते हैं,
व्यर्थ चाहतें,व्यर्थ कामनाएं,
व्यर्थ की बहस और जाने क्या क्या,
मेरी मानो ना..
अपने दिल को वश में कर लो,
 नियंत्रण की रस्सी से बांध रखो,
ये मदमस्त हो जाता है 
अगर खुला छोड़ दो इसको,
हां और एक बात....
कर सको तो स्वयं से मित्रता
घनिष्ठ मित्रता करना...
आग का दरिया आसानी से पार हो जाएगा 1.   21/11/2021
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#KKसांझ
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#विशेषप्रतियोगिता
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Collaborating with सुशील कुमारी "सांझ"

Krish Vj

इश्क़ कैद में है, यह जैल बिखर जाएँ तो अच्छा है 
इश्क़ में सबकी तक़दीर,  सँवर जाएँ तो अच्छा है 

सुकून दिल का है, 'इश्क़' ठहर जाएँ तो अच्छा है 
दर्द ही दर्द है, यूँ  उधर नज़र ना जाएँ तो अच्छा है 

यूँ तो सागर बड़ा गहरा 'प्रेम' का यहाँ 'कृष्णा' है 
कुछ डूब गए है, तो कुछ निखर जाएँ तो अच्छा है 

साथ उसका कमाल का, मगर जाएँ तो अच्छा है 
यादों का क्या करूँ? उम्र गुजर जाएँ तो अच्छा है  कवि सम्मेलन 3 पंचम ग़ज़ल 

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Krish Vj

ग़ज़ल:_ विधवा


आह!आह! करती रही वो 'ज़िन्दगी' ने ना तरस खाया 
चिंतित मन बेचारा उसका, कहा उसने  यूँ सुकून पाया 

छिन गई माथे की बिंदिया,  रंग लाल, सफ़ेद हो आया 
वक़्त का  सितम कहूँ?  इसे मैं या कहूँ कर्मों का साया 

अपशकुनी,डायन और कुल नाशीनी यही नाम है पाया
अश्क मोती बन झलकते रहें, कौन! इन्हें है पोंछ पाया 

आया बसंत बन पतझड़ यूँ,  पिया मुखड़ा देख ना पाया 
बर्बाद हुई, लाचार हुई, सफ़र में ही हमसफ़र खो आया 

विधवा हूँ, कुछ नहीं मैं कर सकती,'ज्ञान' सबने सुनाया 
सिमट गई 'ज़िंदगी' अँधेरों संग, उजाला भी दूर लौटाया  कवि सम्मेलन 3 चतुर्थ ग़ज़ल:_ विधवा 

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Krish Vj

ग़ज़ल:_ दास्तान-ए-ग़म 

ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी है, कुछ नहीं है सोचने के लिए 
यूँही बहता लहू 'अश्क' बन, कोई नहीं पोछने के लिए 

हर हाथ की उंगलियां उठती है, जिस्म नोचने के लिए 
हर ये आँखे उठती है, इज्ज़त तार-तार करने के लिए 

बेटी,बहन, कोई भी रिश्ता नहीं, हवस मिटाने के लिए 
मानसिकता का दोष या बहाना है बस सताने के लिए 

हमबिस्तर करना चाहत सभी की सिर्फ़ वस्तु सी हूँ मैं 
इज्ज़त लेना, देना नहीं, सिर्फ़ हूँ मैं आज़माने के लिए 

किस से रूठे हम यूँ, कोई तो हो ? हमें मनाने के लिए 
पल भर साथ है, कोई नहीं है उम्र भर निभाने के लिए 
 कवि सम्मलेन 3 तृतीय ग़ज़ल 
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Krish Vj

तू कहे या ना कहें...

तू कहे  या ना कहे हमने कर दिया इश्क़ का इज़हार है
दिल मेरा  यह तेरी 'प्रेम' की इन बातों से ही गुलज़ार है 

ना था कोई और  ना होगा कोई, 'प्रेम' की यह दीवार है
निगाहे बंद करूँ  या  खोलू मैं, होता बस तेरा दीदार है 

जहाँ तक जाती यह नज़र वहाँ तक इश्क़ की मीनार है
रहनुमा है  इस दिल का तू, बिन तेरे यह दिल बीमार है 

मानता हूँ मैं,जानता हूँ कि इश्क़ की हर राहे पुरख़ार है
मोहब्बत समंदर है 'दर्द' का मुझे इस से कहाँ इन्कार है 

इश्क़ में नटखटपन, होती रहती छोटी-छोटी तकरार है
तू कहे या ना कहे पर, बिन तेरे यह जीना मेरा बेकार है कवि सम्मेलन-3 प्रथम ग़ज़ल 

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Krish Vj

सूरज गया, आ गई  फ़िर यादों की शाम 
ज़िन्दगी के सब किस्से कहानी तेरे नाम 
फ़िर वो मंज़र, आया  लबों पर तेरा नाम 
सूरज गया, आ गई  फ़िर यादों की शाम 

अधरों से अधर टकराये, होश  है गंवाया 
नयनों ने लाज छोड़ी, हो गए प्रेममय वो 
पलकों ने कैद किया 'महबूब' को यूँ कि
सूरज गया, आ गई फ़िर यादों की शाम 

तन से तन मिला और  रूह पाक हो गई 
मन की सरिता आज 'सागर' की हो गई 
मैं, तुम का गुज़रा ज़माना यूँ हम हो गई 
सूरज गया, आ गई फ़िर यादों की शाम 

शयन किया प्रियतमा संग 'प्रेम' गाँव में 
सुकून के शुरू  ज़माने यूँ  दीवाने हो गए 
खोए इस  कदर, भूल गए सब अफ़साने
सूरज गया, आ  गई फ़िर यादों की शाम  कवि सम्मेलन भाग-2 
पंचम रचना:_ यादों की शाम....

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Krish Vj

कवि सम्मेलन भाग-2 चतुर्थ रचना: दोस्त या दुश्मन? #KKकविसम्मेलन #कोराकाग़ज़ #kk_krishna_prem #KKकविसम्मेलन2 #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़

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वह  गिराता  रहा,  मैं  बनाता रहा
इस  कदर  वह  मुझे  सताता रहा

खासियत उसकी यह भा गई मुझे 
सिद्दत से दुश्मनी को निभाता रहा 

'नाम-ए-मंज़िल' से  बेख़बर था मैं 
वो मंज़िल  का  पता यूँ बताता रहा 

मैं गिरता, संभलता,  फ़िर  गिरता 
हँसकर जोश  मुझ में जगाता रहा

आगे आगे 'नफ़रत' की मशाल ले 
मंज़िल की  राह  रौशन करता रहा  कवि सम्मेलन भाग-2 
चतुर्थ रचना: दोस्त या दुश्मन?

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Krish Vj

कुछ पाया है, तो  कुछ और पाने की प्यास है 
आस है, प्यास है, ज़िन्दगी  एक 'एहसास' है 

ख़्वाब है, ख़्याल है, करती ये  बहुत बवाल है 
आशा है निराशा है,  ज़िन्दगी एक 'विश्वास' है 

पतंग सी  उड़ती रहती हवाओं में,  बेख़बर है 
थक जाती  वक़्त से ये चलता हुआ 'श्वास' है 

रंग अनेक इसके, प्रेम  व नफ़रत की आग है 
साधारण-असाधारण,दिखती ना 'खास' है 

अधूरी है या पूरी है कहानी यह प्यारी सी है
अँधेरों में भटकती, सूरज  का  ये 'प्रकाश' है कवि सम्मेलन भाग-2
तृतीय रचना:_ ज़िन्दगी 
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Krish Vj

कवि सम्मेलन भाग 2 द्वितीय रचना:_ याद सुकून या दर्द #collabwithकोराकाग़ज़ #KKकविसम्मेलन #KKकविसम्मेलन2 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #यादें #kk_krishna_prem

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'एहसास' को यह हवा दे जाती है 
आग  सीने  में, यह जला जाती है 
यादों का 'हिसाब' बड़ा ही अज़ीब 
रुलाकर  के  य़ह  हँसा  जाती है 

कुछ अच्छी  यादें, सुकून दे जाती
आती है लबों  पे मुस्कान दे जाती 
कुछ यादें दर्द का सैलाब ले आती 
भीगी पलकें  ज़िंदगी डूब है जाती 

यादों को अच्छा कहूँ या बुरा कहूँ 
दर्द की  धूप और सुकून की छाँव 
उदासी पल  की, खुशी  लम्हे की 
क्या कहूँ याद सौगात ज़िंदगी की कवि सम्मेलन भाग 2
द्वितीय रचना:_ याद सुकून या दर्द 

#collabwithकोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन2 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #यादें #kk_krishna_prem

Krish Vj

कवि सम्मेलन-भाग 2 रचना:_ प्रथम "रात अभी बाकी है" #collabwithकोराकाग़ज़ #KKकविसम्मेलन #KKकविसम्मेलन2 #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kk_krishna_prem

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सूरज  डूबा  है, रात अभी  बाकी हैं
ए  ज़िन्दगी ! तेरा  हिसाब बाकी है 
गुज़रे लम्हे लौट कर आए ना कभी
दिल में उनकी 'याद' अभी बाकी है 

आहिस्ता-आहिस्ता  गूजर  रात यूँ 
गुफ़्तगू तो  कर, बात अभी बाकी है 
सुन अफ़साना मेरी मोहब्बत का तू
कि अभी एहसास 'दर्द' का बाकी है 

क़ायनात से मिली एक सौगात है ये 
वक़्त बर्बाद ना कर कहानी बाकी है 
गोर फरमा  मेरे हर इशारों पर 'प्रेम'
कि अभी  यूँ इश्क़ का जाम बाकी है  कवि सम्मेलन-भाग 2
रचना:_ प्रथम 
"रात अभी बाकी है"
 
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