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कि कोई जल रहा, है कोई ढल रहा। जो कभी था मिला,

कि  कोई जल रहा,
है कोई  ढल  रहा।

जो कभी  था मिला,
 अब वो  निकल रहा।

कोई है  कहीं उदास,
कोई यहाँ खिल रहा।

मैं तन्हा सफ़र नहीं,
रास्ता संग चल रहा।

मैं धूप हूँ, साया नहीं,
 मुझमें अर्क पल रहा।

भाव  पढ़  पाया नहीं,
 अबोध सा मचल रहा।

©अबोध_मन//फरीदा #अबोध_मन  #अबोध_poetry 
कि कोई जल रहा,
है कोई  ढल  रहा।

जो कभी  था मिला,
 अब वो  निकल रहा।

कोई है  कहीं उदास,
कि  कोई जल रहा,
है कोई  ढल  रहा।

जो कभी  था मिला,
 अब वो  निकल रहा।

कोई है  कहीं उदास,
कोई यहाँ खिल रहा।

मैं तन्हा सफ़र नहीं,
रास्ता संग चल रहा।

मैं धूप हूँ, साया नहीं,
 मुझमें अर्क पल रहा।

भाव  पढ़  पाया नहीं,
 अबोध सा मचल रहा।

©अबोध_मन//फरीदा #अबोध_मन  #अबोध_poetry 
कि कोई जल रहा,
है कोई  ढल  रहा।

जो कभी  था मिला,
 अब वो  निकल रहा।

कोई है  कहीं उदास,

#अबोध_मन #अबोध_poetry कि कोई जल रहा, है कोई ढल रहा। जो कभी था मिला, अब वो निकल रहा। कोई है कहीं उदास, #कविता #फ़क़तफरीदा